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नाव है तो गांव है: सिवान का एक गांव, जहां घर-घर में है नाव, दहेज में भी होता है नाव का लेन-देन - boat village - BOAT VILLAGE

A VILLAGE WHERE EVERY HOUSE HAS A BOAT: पूरी दुनिया जहां विकास के नये-नये सोपान गढ़ रही है वहीं आजादी के 75 सालों बाद भी हिंदुस्तान के कई गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. बिहार के सिवान में भी एक ऐसा ही गांव है, जिसके लिए लकड़ी की नाव ही लाइफ लाइन है, इसे आप नाव वाला गांव भी कह सकते हैं,

यहां घर-घर में नाव है
यहां घर-घर में नाव है (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 21, 2024, 6:02 PM IST

Updated : Jul 21, 2024, 9:30 PM IST

नाव के सहारे मुसीबतों से दो-दो हाथ (ETV BHARAT)

सिवानः मॉनसून ने जोर पकड़ लिया है और भारी बारिश के बाद सिवान में गंडक नदी उफान पर है और गंडक नदी का ये उफान इस गांव की मुसीबत का सबब बन गया है, क्योंकि ये गांव आजादी के सात दशकों बाद बुनियादी सुविधाओं के अभाव का दंश झेल रहा है. इस गांव में न तो सड़क है और न ही गंडक नदी पर कोई पुल. ऐसे में गांव के लोगों के लिए बस एक सहारा है और वो है लकड़ी से बनी नाव.

नाव वाला गांव (ETV BHARAT)

घर-घर में है नावःसिवान के गुठनी प्रखंड के तीर बलुआ गांव के लोग सालों से विकास की राह देख रहे हैं. 21 वीं सदी की बातें तो इनके लिए बेमानी है, क्योंकि इनके आगे-पीछे, अगल-बगल, दाएं-बाएं सिर्फ पानी ही पानी है. ऐसे में इनके लिए नाव बड़ा सहारा है. गांव में करीब 180 परिवारों का बसेरा है और यहां करीब 150 नाव हैं, जिनके सहारे ये जिंदगी की मुसीबतों से दो-दो हाथ कर रहे हैं.

नाव ही है जीने का सहारा (ETV BHARAT)

गांव में फूस के ही हैं अधिकतर घरः गांव में रहनेवाले लोगों का मुख्य व्यवसाय है नाव बनाना और मछली पकड़ना है. गांव में अधिकांश घर फूस से बने हैं. अफसोस की बात तो ये है कि गांव में एक भी शौचालय नहीं है. मतलब साफ है 21 वीं सदी की इस दुनिया में भी ये गांव पिछड़ेपन का बड़ा नमूना बना हुआ है.

ये नाव वाला गांव है (ETV BHARAT)

विकास की राह देखता तीर बलुआ: गांव से सटा ही है दरौली विधानसभा क्षेत्र, जहां से पिछड़ों के नेता होने का दावा करनेवाले सत्यदेव राम विधायक हैं. बावजूद इसके इस गांव में सड़क,शौचालय,पीने का पानी तक नहीं पहुंच सका है.स्थानीय लोगों के मुताबिक कई बार विधायक और सरकारी कर्मचारी आये लेकिन आजतक 'विकास' नहीं आया.

बरसात में नाव पर ही कटते हैं दिन-रातः गंडक किनारे बसे इस गांव में मल्लाह समाज के लोगों की आबादी सबसे ज्यादा है. यहां रहनेवाले लोगों के लिए नाव ही आवाजाही का एकमात्र साधन है.बाजार जाना हो या डॉक्टर के पास नदी के पार ही जाना पड़ता है. बारिश और बाढ़ के मौसम में तो हालत ये हो जाती है कि लोग सामान और बच्चों को लेकर नाव पर ही चले जाते हैं और दिन-रात वहीं कटती है.

"नाव में रहते वक्त एक डर बना रहता है कि कहीं कोई जहरीला जानवर न काट ले. रात भर जागकर ही गुजारना पड़ता है. फिलहाल बारिश का मौसम है और गांव पर खतरा मंडरा रहा है. घरों की मिट्टी पानी से कटने लगी है, पूरे गांव में दहशत है. अगर बांध बना दिया जाए तो कम से कम बाढ़ की मुसीबत से छुटकारा मिल जाता.'स्थानीय निवासी

विकास की राह देखता गांव (ETV BHARAT)

नाव बनाने में करीब 15 हजार का खर्च आता हैःगांव के अधिकतर लोग नाव बनाने की कला में माहिर हैं.गंगा सागर सहनी के अनुसार एक नाव बनाने में करीब 15 हजार रुपये की लागत आती है और ये 7 से 10 दिनों में बनकर तैयार हो जाती है. नाव बनाने के बाद उसे कुछ दिनों तक पानी मे डुबो कर रखा जाता है. जब लकड़ी पानी सोख लेता है तब नाव को फिर से बनाने का काम शुरू होता है. असली कारीगरी उसी वक्त होती है.

"नाव बनाकर एवं मछली पकड़कर हमलोग अपना गुजर बसर करते हैं. किसी के पास कोई नौकरी नही है. अब तो दिन-दिन भर मछली मारने पर भी उतनी मछलियां नहीं मिल पातीं कि गुजारा हो सके.उसके लिए दूर-दूर तक नाव के सहारे मछली पकड़ने जाना पड़ता है." स्थानीय निवासी

दहेज में होता है नाव का लेन-देनःखासियत कहिए या मजबूरी यहां दहेज में नाव का लेन-देन भी होता है ताकि दूल्हा-दुल्हन को आवाजाही में किसी प्रकार की दिक्कत न हो. कुल मिलाकर नाव के सहारे ही इस गांव के लोग अपनी जिंदगी सालों से ढोते आ रहे हैं.

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Last Updated : Jul 21, 2024, 9:30 PM IST

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