जगदलपुर : बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ के उन इलाकों में से एक है जहां कुदरत का दिया सबकुछ है. हरे भरे जंगल, ऊंचे पहाड़, मनमोहक वादियां, नदियां का किनारा और विलुप्त होते वन्यजीवों का ठिकाना.इसी बस्तर में अबूझमाड़ क्षेत्र भी है,जिसके बारे में ये कहा जाता है कि इस जगह को पूरी तरह से आज तक कोई जान या समझ ना सका.इसलिए इसका नाम अबूझमाड़ पड़ा.लेकिन मन को मोहने वाली सुंदरता के बीच नक्सलवाद की जड़ें भी फैली हुई है.नक्सलवाद के पेड़ ने ना जाने कितने मासूम आदिवासियों का जीवन उजाले की जगह अंधेरे में धकेल दिया.नक्सली दहशत की हनक कुछ ऐसी फैली कि जहां-जहां इसकी आमद हुई वहां के विकास की रफ्तार कछुआ चाल जैसी हो गई.आज भले ही बस्तर के कई शहर विकास की राह की ओर अग्रसर है,लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां नक्सली दहशत का खामियाजा ग्रामीण भुगत रहे हैं. ऐसा ही एक गांव एलेंगनार भी है.जहां आज से पांच साल पहले पहली बार लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लेने के लिए ग्रामीणों ने नक्सली धमकी को दरकिनार किया था.ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक वोट गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेगा. लेकिन अब पांच साल बाद ना तो गांव की तस्वीर बदली और ना ही तकदीर.
नक्सली धमकी के बाद भी दिया था वोट :ईटीवी भारत ने बस्तर में पहले चरण के मतदान से पहले एलेंगनार गांव का दौरा किया.मकसद था उस तस्वीर को आप तक पहुंचाना जिसे बदलने के लिए मासूम ग्रामीणों ने नक्सलियों से लोहा ले लिया था. ना तो इन्हें अपनी जान का डर था और ना ही वोटिंग के बाद होने वाली यातनाओं की चिंता.मन में सिर्फ एक उम्मीद थी कि यदि सरकार चुनने में हमारी भी भागीदारी हुई तो एक ना एक दिन गांवों को हर तरह के कष्ट से मुक्ति मिलेगी.इसलिए नक्सली धमकी के बाद भी ग्रामीणों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी.
12 किलोमीटर पैदल चलकर डाला था वोट :बस्तर और सुकमा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में बसे एलेंगनार गांव से पोलिंग बूथ की दूरी 12 किलोमीटर थी. नदी- नाले,पहाड़ और जंगल को पार करने के बाद ग्रामीणों को वोट डालना था.यही नहीं वोट डालने के बाद ग्रामीणों को वापस इसी रास्ते अपने गांव भी आना था.यदि रास्ते में नक्सली मिले तो समझ लिजिए वो दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन होना तय था. 2019 में एलेंगनार गांव में रहने वाले 100 परिवारों को नक्सली पहले ही चुनाव बहिष्कार करने की धमकी दे चुके थे.ऐसे में वोटिंग वाले दिन गांव से बाहर कदम रखना मानो अपनी मौत अपने हाथों से चुनने जैसा था.फिर भी ग्रामीण बिना किसी डर के घर से बाहर निकले. अपना जीवन अपने हाथ में रखकर ग्रामीण निकल पड़े उस पोलिंग बूथ की ओर जहां उन्होंने उम्मीद का सूरज नजर आ रहा था. ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक-एक वोट गांव में पसरे पिछड़ेपन के अंधेरे को विकास की रोशनी से दूर कर देगा.लिहाजा गांव से 12 किलोमीटर दूर ताहकवाड़ा पोलिंग बूथ में जाकर ग्रामीणों ने वोट डाला.