नई दिल्ली: सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 वर्ष की आयु में दिल्ली एम्स में निधन हो गया. सीताराम येचुरी के राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी. उनकी जेएनयू से शुरू की गई छात्र राजनीति के दिनों को लेकर 1974 एसएफआई के सेक्रेटरी और काउंसलर रहे सुहेल हाश्मी ने बताया कि सीताराम येचुरी 1973 में एमए अर्थशास्त्र के छात्र के रूप में जेएनयू में दाखिल हुए. तब मैं 1972 से जेएनयू का छात्र था और एसएफआई का कार्यकर्ता भी था.
1974 में जब सीताराम येचुरी एसएफआई के सदस्य बने उस समय मैं एसएफआई की जेएनयू इकाई का सेक्रेटरी था. साथ ही स्कूल ऑफ सोशल साइंस का काउंसलर भी था. सोहेल ने बताया कि सीताराम बहुत ही मिलनसार सरल और सहज स्वभाव के व्यक्ति थे. जेएनयू ने सीताराम येचुरी के रूप में एक ऐसा नेता पैदा किया जिसने भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग ही जगह बनाई. उन्होंने बताया कि सीताराम की सक्रियता और छात्रों के हक की लड़ाई को पुरजोर तरीके से लड़ने के कारण ही जेएनयू में एसएफआई लगातार मजबूत होती चली गई. येचुरी ने आपातकाल के खिलाफ भी जेएनयू में छात्र आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व किया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद इमरजेंसी के दौरान छात्रों के खिलाफ काम करने वाले जेएनयू के तत्कालीन वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और दो अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ मुखर आंदोलन चलाया.
डेढ़ साल में तीन बार चुने गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष:येचुरी के जेएनयू में ही जूनियर रहे डी रघुनंदन ने उनको याद करते हुए बताया कि सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया. उस समय घटित हुए दोनों घटनाक्रम अपने आप में अजीबोगरीब थे. लेकिन उन घटनाक्रम से उस समय के छात्र संघ की शक्ति और छात्र-छात्राओं की राजनीतिक समझ का भी पता चलता था. रघुनंदन ने बताया कि फरवरी 1977 में आपातकाल हटने के बाद जेएनयू में फिर से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग तेज हो चली थी. वैसे जेएनयू में आमतौर पर चुनाव अक्टूबर के महीने में होता था. लेकिन, 1974 में छात्र संघ का चुनाव होने के बाद इमरजेंसी लग गई और तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष देवी प्रसाद त्रिपाठी को भी आपातकाल में गिरफ्तार का जेल भेजा गया.
1975-76 में इमरजेंसी लगी रहने के कारण नहीं हुए चुनाव:इमरजेंसी लगी रहने के कारण 75 और 76 में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए. इसलिए तब तक देवी प्रसाद त्रिपाठी ही छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. लेकिन, जब 1977 को फरवरी के महीने में इमरजेंसी खत्म हो गई तो छात्रों ने पुरजोर तरीके से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग उठानी शुरू कर दी. एसएफआई के विरोधी छात्र संगठनों का कहना था कि इमरजेंसी खत्म हो गई है तो छात्र संघ का चुनाव लंबित है. अब चुनाव होना चाहिए. लेकिन, एसएफआई का मानना था कि देवी प्रसाद त्रिपाठी छात्र संघ के अध्यक्ष हैं. वह अभी जेल में हैं, जब तक वह जेल से छूटकर नहीं आते हैं तब तक उनको अध्यक्ष मानना चाहिए और तब तक चुनाव नहीं कराया जाना चाहिए. वैसे भी जेएनयू में चुनाव का समय अक्टूबर का होता है तो चुनाव अक्टूबर में कराया जाना ही ठीक रहेगा. लेकिन, उस समय के विरोधी छात्र संगठन इस बात को नहीं माना और उन्होंने जीबीएम की मांग उठानी शुरू कर दी.
उस समय छात्र दो धड़ों में बंट गए. एक धड़े का कहना था कि इलेक्शन होना चाहिए तो दूसरे धड़े का कहना था इलेक्शन नहीं होना चाहिए. लेकिन, अंत में जीबीएम बुलाने का निर्णय लिया गया. पूरे जेएनयू की जीबीएम बुलाई गई. जीबीएम में छात्र संघ के विरोधी धड़े के द्वारा मौजूदा छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उस अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. जिसमें एसएफआई और देवी प्रसाद त्रिपाठी के नेतृत्व में चुने हुए छात्र संघ की हार हुई. जीबीएम में हार के बाद चुनाव होना तय हो गया. फिर से फरवरी के महीने में जेएनयू छात्र संघ का चुनाव हुआ, जिसमें एसएफआई की ओर से सीताराम येचुरी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे. सीताराम ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की.