रांची:बीजेपी में शामिल होने के बाद सीता सोरेन ने अपने गुस्से का इजहार किया है. माना जा रहा है कि उन्होंने अपने इस ट्वीट से कल्पना सोरेने को जवाब दिया है. कल्पना सोरेन ने सीता के बीजेपी में शामिल होने के बाद ट्वीट किया था.
सीता सोरेन ने सोशल मीडिया अकाउंट पर क्या लिखा
सीता सोरेन ने एक के बाद एक 7 ट्वीट कर हुए अपना गुस्सा जाहिर किया है. सीता सोरेन ने लिखा कि 'झारखंड और झारखंडियों के लिये अपने जीवन का बलिदान देने वाले स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी के नाम की आज दुहाई देकर घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों से विनती है कि मेरे मुंह में अंगुली नहीं डालें.'
पति के निधन के बाद जीवन भयानक सपने जैसा- सीता
अपने पहले ट्विट पर सीता सोरेन ने बताया कि उनके पति के निधन के बाद उनकी जिंदगी में जो परिवर्तन आया वह किसी भयानक सपने से कम नहीं है. उन्होंने लिखा ' मेरे पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी के निधन के बाद से मेरे और मेरे बच्चों के जीवन में जो परिवर्तन आया, वह किसी भयावह सपने से कम नहीं था। मुझे और मेरी बेटियों को न केवल उपेक्षित किया गया, बल्कि हमें सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी अलग-थलग कर दिया गया.'
ईश्वर जानता है मैने अपनी बेटिंयों के कैसे पाला-सीता सोरेन
अपने दूसरे ट्वीट में सीता ने लिखा 'ईश्वर जानता है कि मैंने इस दौर में अपने बेटियों को कैसे पाला है. मुझे और मेरी बेटियों को उस शून्य में छोड़ दिया गया, जहां से बाहर निकल पाना हमारे लिए असंभव लग रहा था. मैंने न केवल एक पति खोया, बल्कि एक अभिभावक, एक साथी और अपने सबसे बड़े समर्थक को भी खो दिया.'
इस्तीफा के पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं- सीता सोरेन
अपने तीसरे ट्वीट में सीता सोरेन ने लिखा 'मेरे इस्तीफे के पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं है. यह मेरी और मेरी बेटियों की पीड़ा, उपेक्षा और हमारे साथ हुए अन्याय के खिलाफ एक आवाज है. जिस झारखंड मुक्ति मोर्चा को मेरे पति ने अपने खून-पसीने से सींचा, वह पार्टी आज अपने मूल्यों और कर्तव्यों से भटक गई है.'
झामुमो मेरे लिए पार्टी नहीं परिवार का हिस्सा था-सीता सोरेन
अपने चौथे ट्वीट में उन्होंने लिखा 'मेरे लिए, यह सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि मेरे परिवार का एक हिस्सा था. मेरा निर्णय भले ही दुःखदायी हो, लेकिन यह अनिवार्य था. मैंने समझ लिया है कि अपनी आत्मा की आवाज़ सुनना और अपने आदर्शों के प्रति सच्चे रहना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.'
इस्तीफे को व्यक्तिगत संघर्ष के रूप में देखें-सीता सोरेन
अपने पांचवे ट्वीट में बीजेपी नेत्री ने लिखा 'मैं समस्त झारखंडवासियों से अनुरोध करती हूं कि मेरे इस्तीफे को एक व्यक्तिगत संघर्ष के रूप में देखें, न कि किसी राजनीतिक चाल के रूप में'
मेरे मुंह में अंगुली नहीं डालें- सीता सोरेन
अपने छठे ट्वीट में सीता सोरेन ने लिखा 'झारखंड और झारखंडियों के लिये अपने जीवन का बलिदान देने वाले स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जी के नाम की आज दुहाई देकर घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों से विनती है कि मेरे मुंह में अंगुली नहीं डालें, वरना अगर मैं और मेरे बच्चों ने मुंह खोलकर भयावह सच्चाई उजागर किया तो कितनों का राजनैतिक और सत्ता सुख का सपना चूर-चूर हो जायेगा और झारखंड की जनता वैसे लोगों के नाम पर थूकेंगी जिन्होंने हमेशा से दुर्गा सोरेन और उनके लोगों को मिटाकर समाप्त करने की साज़िश की है.'
कल्पना सोरेन ने क्या लिखा था
इससे पहले कल्पना सोरेन ने ट्वीट किया था. माना जा रहा है कि सीता सोरेन ने इसी का जवाब दिया है. कल्पना ने लिखा था 'हेमंत जी के लिए स्वर्गीय दुर्गा दा, सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता तुल्य अभिभावक के रूप में रहे. 2006 में ब्याह के उपरांत इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनने के बाद मैंने हेमंत जी का अपने बड़े भाई के प्रति आदर तथा समर्पण और स्वर्गीय दुर्गा दा का हेमंत जी के प्रति प्यार देखा.
हेमंत राजनीति में नहीं आना चाहते थे- कल्पना सोरेन
कल्पना सोरेन ने लिखा कि 'हेमंत जी राजनीति में नहीं आना चाहते थे परंतु दुर्गा दादा की असामयिक मृत्यु और आदरणीय बाबा के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आना पड़ा. हेमंत जी ने राजनीति को नहीं बल्कि राजनीति ने हेमंत जी को चुन लिया. जिन्होंने आर्किटेक्ट बनने की ठानी थी उनके ऊपर - अब झामुमो, आदरणीय बाबा और स्व दुर्गा दा की विरासत तथा संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी.'
पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ लड़ते हुए जेल गए हेमंत-कल्पना
कल्पना सोने ट्वीटर अकाउट पर लिखा 'झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के समन्वय से हुआ था. झामुमो आज झारखंड में आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों समेत सभी गरीबों, वंचितों और शोषितों की विश्वसनीय आवाज बन कर आगे बढ़ रही है. आदरणीय बाबा एवं स्व दुर्गा दा के संघर्षों और जो लड़ाई उन्होंने पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ लड़ी थी, उन्हीं ताकतों से लड़ते हुए आज हेमंत जी जेल चले गये. वे झुके नहीं. उन्होंने एक झारखंडी की तरह लड़ने का रास्ता चुना. वैसे भी हमारे आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा ही नहीं है. झारखंडी के DNA में ही नहीं है झुक जाना. सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही...'
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