जोधपुर. 26 जुलाई यानी आज कारगिल युद्ध के 25 साल पूरे हो गए हैं. इस युद्ध में भारत के सैकड़ों जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की सीमाओं की रक्षा की. 1999 में वह दौर था जब मोबाइल नहीं थे. ऐसे में खत सैनिकों का परिवार से जुड़े रहने का सहारा था. परिवार भी चिट्ठी का इंतजार करते थे. चिट्ठी से जुड़ी एक दास्तां जोधपुर के अमर शाहिद कालूराम जाखड़ से जुड़ी है. जिन्होंने कारगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान दे दी. लड़ाई के मैदान में ही मोर्चा संभाले जोधपुर के खेड़ी चारणान के कालूराम जाखड़ ने 4 जुलाई को अपने घर पर एक चिट्ठी भेजी थी, लेकिन अफसोस चिट्ठी के घर पहुंचने से पहले ही कालूराम का पार्थिव शरीर उसके घर पहुंच गया. वह दुश्मन के गोले का शिकार बन गए. 6 जुलाई को उनकी देह घर पहुंची और 10 जुलाई उनकी लिखी चिट्ठी जो आज भी परिजनों के लिए उनकी याद का सहारा बनी हुई है.
4 जुलाई को हो गए थे शहीद : दरअसल, कारगिल क्षेत्र की दुर्गम पहाड़ियों में कई ऐसे पॉइंट थे, जिन पर पाकिस्तानी घुसपैठिए व पाक सेना ने कब्जा कर लिया था. जिन्हें दुश्मन से छुड़ाने में भारत को अपने कई वीर जवान खोने पड़े. ऐसा पॉइंट था पिम्पल टॉप, जिसे पाक सेना और घुसपैठियों ने कब्जा लिया था. इस पर काबू करने की लिए 17 जाट बटालियन की टुकड़ी को भेजा गया, जिसमें जोधपुर के खेड़ी चारणा के नायक कालूराम जाखड़ भी शामिल थे. लक्ष्य था पहाड़ी पर बनाए गए बंकर को नष्ट करना. इसके लिए 4 जुलाई को भयंकर लड़ाई हुई. कालूराम के पास मोर्टार का जिम्मा था, जिससे उन्होंने दुश्मनों को नाको चने चबवा दिए. पिंप्पल पहाड़ी पर 2 बंकर नष्ट कर दिए और कईं पाक सैनिकों को मार गिराया. इस बीच एक बंकर शेष था, जिस पर विचार-विमर्श कर चौतरफा हमला करने का निर्णय लिया गया. पाक की दिशा की तरफ से भारतीय सैनिकों ने गोले बरसाने शुरू किए. इसके साथ सामने भारत की तरफ भी गोले आने लगे. इससे बंकर में छिपे बैठे पाक सैनिकों में हाहाकार मच गया. इसके बाद पाक की ओर से जवाबी फायरिंग शुरू हुई, जिसका जवाब भी कालूराम और उनके साथी दे रहे थे. इस बीच दुश्मन का एक गोला कालूराम की जांघ पर लग गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. लगातार हमला करते रहे. बाकी बचा बंकर नष्ट होने के साथ ही भारतीय सेना ने पिम्पल पॉइंट को फतह कर लिया, लेकिन इस दौरान कालूराम जाखड़ ने अपना बलिदान देश के लिए दे दिया.
सम्मान मिला, अब सहयोग की जरूरत :सैनिक कुशलता, साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति के लिए भारत सरकार ने उन्हें 'बैज ऑफ सेक्रीफाईस (मरणोपरांत ) से सम्मानित किया. शहीद कालूराम जाखड़ की स्मृति में गांव से जोधपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर शहीद स्मारक बना हुआ है और गांव के मुख्य चौक में मूर्ति स्थल बना हुआ है. उनके नाम से स्कूल का नामकरण भी किया गया है. गांव के निवासी सुनील बिश्नोई बताते हैं कि कालूराम जाखड़ की प्रेरणा से कई युवा सेना में शामिल हुए हैं.