सोलन में शूलिनी मेले की शुरुआत (SHOOLINI FAIR) सोलन: बघाट रियासत की कुलदेवी और सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी माता शूलिनी माता के तीन दिवसीय राज्यस्तरीय शूलिनी मेले का शुक्रवार को आगाज हो गया है. पालकी में सवार होकर दोपहर करीब 2:00 बजे माता शूलिनी शहर के गंज बाजार में स्थित अपनी बहन दुर्गा से मिलने के लिए निकलीं. शुक्रवार को पहले दिन माता के दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी. मंदिर से करीब 200 मीटर दूर पुरानी कचहरी में मां शूलिनी की पालकी का स्वागत स्वास्थ्य मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने किया.
राज्य स्तरीय शूलिनी मेले का शुभारंभ हर बार प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन सीएम सुक्खू इस बार कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए. शुक्रवार को शोभायात्रा से पहले शूलिनी मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना की गई. इसके बाद पारंपरिक वाद्य यंत्र और ढोल-नगाड़ों के साथ मां शूलिनी पालकी में निकलीं. शूलिनी मन्दिर से लेकर कचहरी चौक तक माता की पालकी को माता के कल्याणे उठाकर चल रहे थे. वहीं, पुरानी कचहरी के बाद शोभायात्रा चौक बाजार पहुंची.
शूलिनी मेले में शोभा यात्रा के दौरान माता की पालकी (ईटीवी भारत) सोलन शहर के अप्पर और गंज बाजार से होते हुए माता की पालकी पहले ठहराव पर पुराने बस स्टैंड पर पहुंची. यहां हजारों लोगों ने माता का आशीर्वाद लिया. इसके बाद पुराना डीसी चौक से माता की पालकी वापस गंज बाजार की ओर निकली. माता की पालकी रात को करीब 11 बजे गंज बाजार स्थित अपनी बहन के पास पहुंचेंगी. यहां माता तीन दिन रुकने के बाद रविवार को वापस मंदिर चली जाएंगी. मां शूलिनी की शोभायात्रा को भव्य, सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए झांकियां भी साथ रहीं. इसमें गणेश, कृष्ण, शिव और मां काली, अघोरी तांडव, हनुमान, भगवान राम आदि की झांकियां भी रहीं.
शोभा यात्रा में झांकियां रहीं आकर्षण का केंद्र (ईटीवी भारत) पहाड़ी वाद्य यंत्र, बैंड-बाजों ने शोभायात्रा का गौरव बढ़ाया. सोलन शहर में मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा 500 पुलिस कर्मी सम्भाल रहे है. वहीं ठोडो ग्राउंड में एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड को भी तैनात किया गया है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की ओर से यहां कैम्प भी लगाया गया है.
शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी को बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी देवी माना जाता है. माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था. माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया. मान्यता के अनुसार बघाट के राजा अपनी कुल देवी यानी की माता शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए हर मेले का आयोजन करते थे. यहां के लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के खुश होने पर यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि शहर में सिर्फ खुशहाली आती है. इसलिए आज भी मेले की यह परंपरा कायम है.