कोडरमाःमान्यता है कि सावन में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं. साथ ही हिन्दू धर्म ग्रंथों में सावन की सोमवारी का खास महत्व बताया गया है. सोमवारी के दिन श्रद्धालु शिवालयों में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. ऐसे तो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का खास स्थान है, लेकिन कोडरमा में भी एक प्राचीन शिव मंदिर हैं तो पुरातात्विक महत्व रखता है और यहां के लोग इस मंदिर को देवघर के बाबा मंदिर के रूप में ही जानते हैं.
सतगावां के घोड़सिमर मंदिर में छिपे हैं कई रहस्य
हम बात कर रहे हैं कोडरमा के सतगावां प्रखंड स्थित घोड़सिमर मंदिर की. यहां भोलेनाथ को लोग घोड़मेश्वर बाबा के रूप में पूजते हैं. यह मंदिर अति प्राचीन होने के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व भी रखता है. साथ ही मंदिर के गर्भ में कई इतिहास छिपे हैं.
दूध से अभिषेक करने पर उभरती है महादेव की तस्वीर
स्थानीय जानकारों और पुजारी के अनुसार शिव पुराण में जो चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की बताई गई है, वहीं चौहद्दी कोडरमा के घोड़सिमर मंदिर की भी है. यहां भोलेनाथ की पांच फीट आयताकार विशालकाय शिवलिंग स्थापित है, जो दिन के चारों पहर में अलग-अलग रंगों में नजर आता है. साथ ही स्थानीय लोग बताते हैं कि शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने पर भगवान शिव की छवि शिवलिंग पर उभर आती है. मान्यता है कि लंकाधिपति रावण भगवान भोलेनाथ का विशालकाय शिवलिंग लेकर जाते वक्त यहीं रुके थे और यहीं उस शिवलिंग को स्थापित कर दिया. तब से इस जगह पर भोलेनाथ की पूजा-पाठ होती आ रही है.
कोडरमा जियोलॉजिकल विभाग के प्रोफेसर प्यारेलाल यादव ने बताया कि शिवलिंग का रंग बदलना सूर्य की रौशनी के साथ होता है. सूर्य की रौशनी जब मंदिर के फर्श और दीवारों पर जब पड़ती है तो वह रिफलेक्ट करता है. जिसकी वजह से मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग का रंग अलग अलग समय पर परावर्तित होने के कारण अलग-अलग रंगों में नजर आता है. -प्रोफेसर प्यारेलाल यादव, राम लखन सिंह यादव कॉलेज, कोडरमा (जियोलॉजिकल विभाग).
कोडरमा से 55 किलोमीटर दूर घोड़सिमर मंदिर
कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर गया से देवघर जाने वाली सड़क पर दुम्मदुमा गांव स्थित सतगावां प्रखंड के सकरी नदी किनारे अवस्थित घोड़सिमर मंदिर की प्रसिद्धि कोडरमा ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी फैली है और दूर-दूर से लोग इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. यहां शिवलिंग के अलावे हजारों मूर्तियां हैं. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में इस मंदिर के अलावा यहां 108 मंदिरों की स्थापना की थी.