औरंगाबाद: ये कहानी है उन शूरवीरों की जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश के लिए हंसते-हंसते कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. 25 साल पहले भारत के वीर सपूतों ने पाकिस्तानी सैनिकों के मंसूबों को पस्त करते हुए कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था. इस युद्ध में हिंदुस्तान के कई योद्धाओं ने अपनी शहादत भी दी थी. इन्हीं में एक औरंगाबाद के वीर सपूत शिव शंकर गुप्ता अपने साथियों के पार्थिव शरीर को लाने के लिए दुश्मनों की मांद में जा घुसे थे और शहीद हो गए.
अफसरों का पार्थिव शरीर लाने में सीने पर गोली: शिव शंकर साथी सैनिकों के साथ 6 जून 1999 की सुबह पार्थिव शरीर लाने के लिए आगे बढ़े और 14230 फुट ऊंची पथरीली व बर्फीली पहाड़ी पर पहुंच गये. वहां कंपनी कमांडर का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था. रेंगते हुए वे शव के पास पड़े हथियार और गोला-बारूद नीचे ले आये. पार्थिव शरीर लाने के लिए दोबारा ऊपर चढ़े और उसे लेकर 50 मीटर की ही दूरी तय की थी कि उन्हें दुश्मन की गोली लग गयी और देश के लिए शहीद हो गए.
"शहीद शिव शंकर गुप्ता चार भाई बहन में सबसे बड़ा था. बचपन से ही वह फौज में जाना चाहता था. जब वीरता दिखाने की बारी आई तो उसने पीछे नहीं हटा. दुश्मनों का डटकर सामना किया और करगिल विजय में अपने प्राणों की आहुति दे दी."- नंदलाल गुप्ता, पिता
35वें दिन शिव शंकर का पार्थिव शरीर पहुंचा गांव:करगिल युद्ध का योद्धा शहीद शिव शंकर गुप्ता को याद करते हुए उनके पिता नंदलाल गुप्ता ने बताया कि 6 जून 1999 को पोस्ट ऑफिस के माध्यम से उनके गांव पर एक डाकिया और एक लिफाफा देकर चला गया. जिसको खोलने पर पाया कि एक हजार रुपए हैं और उनके पुत्र के शहीद होने का पत्र है. पत्र मिलने के लगभग एक महीना पहले तक कुछ पता ही नहीं चल रहा था. 35वें दिन शहीद शिव शंकर गुप्ता का पार्थिव शरीर को लेकर सेना के कुछ जवान बनचर बगरा गांव पहुंचे.
28 अक्टूबर 1996 को सेना में भर्ती हुए थे शिवशंकर: सिपाही शिव शंकर गुप्ता 28 अक्टूबर 96 को सेना में भर्ती होकर बिहार रेजिमेन्ट केन्द्र में और बुनियादी प्रशिक्षण के बाद प्रथम बिहार रेजिमेंट में पदस्थापित किये गये. इनकी कार्यकुशलता, जोश एवं साहस ने इस छोटी सी अवधि में सबका दिल जीत लिया. पलटन में सभी रैंकों के लिए मिसाल बन गये.