आदि अवतारोदय तीर्थ को मिलेगी धार्मिक पहचान कोटा. बारां जिले के शेरगढ़ के नजदीक पाड़ाखोह में पहाड़ी की चट्टानों पर बनी सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियों को धार्मिक पहचान मिलेगी. यह सभी मूर्तियां जैन धर्म से जुड़ी हुई हैं. जैन समाज के लोग सामूहिक प्रयास कर वहां पर धार्मिक स्थल तैयार कर रहे हैं. इसी क्षेत्र से करीब 275 साल पहले भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को झालावाड़ जिले के खानपुर स्थित चांदखेड़ी ले जाया गया था. जहां पर अब विश्व प्रसिद्ध आदिनाथ दिगंबर जैन चंद्रोदय तीर्थ बन गया है.
आदिनाथ दिगंबर जैन चंद्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी खानपुर ट्रस्ट के अध्यक्ष हुकुम जैन काका का कहना है कि पहाड़ी पर चढ़ना दुर्गम हो रहा है. पहले जैन संत यहां पर आते रहे हैं. पहाड़ी पर कई अलग-अलग मूर्तियां हैं, जिनमें एक मूर्ति भगवान पार्श्वनाथ की है. जबकि दो अन्य मूर्तियां भी वहां है. कुछ मूर्तियां खंडित अवस्था में पड़ी हुई है. पूरी तरह से दुर्लभ इस स्थान को संरक्षित करना चाहते हैं. इस क्षेत्र को आदि अवतारोदय तीर्थ नाम दिया गया है. यहां पर यात्रियों के लिए सुविधाएं विकसित की जाएगी. पूजा-अर्चना के लिए शेड व मंदिर बनाया जाएगा.
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हुकुम जैन काका का कहना है कि वर्तमान में 2.89 करोड़ के काम जैन टूरिस्ट सर्किट के तहत शेरगढ़ और पाड़ाखोह में सरकार करवा चुकी है. वर्तमान में इस इलाके में 5.5 करोड़ के कार्यों का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास टूरिस्ट डिपार्टमेंट भेजा है. यह कार्य भी जैन टूरिस्ट सर्किट के तहत होना है. इसके अलावा चांदखेड़ी तीर्थ ट्रस्ट भी यहां पर निर्माण कार्य करवा रहा है.
पहाड़ी पर चढ़ने के लिए बनाई जाएंगी सीढ़ियां: पहाड़ी पर जिस जगह पर यह मूर्तियां स्थित हैं, वहां पर कंदराएं और गुफाएं हैं. जिनमें जैन संतों के पूजा-अर्चना और चातुर्मास करने के संकेत मिलते हैं, क्योंकि इस जगह पर भगवान की मूर्तियां और जैन समाज से जुड़ी छतरियां और आर्किटेक्चर नजर आता है. यहां दरवाजे लगाकर इन मूर्तियों को सुरक्षित किया है, क्योंकि यह चट्टानों में ही उकेरी गई है. अब सीढ़ियां बनाने का काम शुरू कर रहे हैं, ताकि पर्यटक और जैन धर्म से जुड़े लोग यहां पर आ सकें. इसके अलावा बाउंड्री वॉल भी करवाई गई है.
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पाड़ाखोह से पहुंची थी मूर्ति चांदखेड़ी, फिर आगे नहीं गई: हुकुम जैन काका का कहना है कि कोटा दरबार के दीवान रहे किशन दास मडिया जैन समाज से ही थे. उन्हें करीब 275 साल पहले स्वप्न आया था कि पाड़ाखोह में जैन समाज के भगवान से जुड़ी मूर्तियां हैं. वह इस जगह को तलाशते हुए शेरगढ़ के पाड़ाखोह पहुंचे. वहां पर खुदाई करने पर 8 से 10 फीट गहराई में भगवान आदिनाथ की सवा 6 फीट फीट लम्बी मूर्ति थी, जिसे बैलगाड़ी के जरिए सांगोद ले जाया जा रहा था. लेकिन जब पहला स्टॉपेज पाड़ाखोह से 7 किलोमीटर दूर चांदखेड़ी में रूपली के नजदीक लिया. उसके बाद यह मूर्ति आगे नहीं सरकी. इसमें कई बार बैल बदले. बाद में चमत्कार मानते हुए वहीं प्रतिमा को स्थापित कर दिया गया.
हुकुम जैन काका का यह भी कहना है कि यह विश्व का पहला मंदिर है, जहां पर पहले मूर्ति स्थापित हुई और बाद में मंदिर का निर्माण करवाया गया है. साल 1992 के बाद मंदिर में सुधार का क्रम शुरू हुआ और 2002 के बाद यहां पर पूरी तरह से जैन तीर्थ बनकर तैयार हो गया.
पूरी तरह से वीरान और अवशेष ही पड़े है पाड़ाखोह में: हुकुमचंद कहना है कि पाड़ाखोह व शेरगढ़ में जैन समाज से जुड़े लोग रहे हैं. साधु—संत भी आते रहते थे. तब यहां पर अच्छे मंदिर थे, लेकिन बाद में सभी मंदिर खंडित स्थिति में ही मिले हैं. विदेशी आक्रांताओं के समय इन्हें तोड़ दिया गया. क्योंकि शेरगढ़ का दुर्ग मालवा के अधीन आता है. शेरगढ़ दुर्ग के अंदर भी एक जैन मंदिर है. अभी यह राजस्थान पुरातत्व विभाग के अधीन आ रहा है.
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सुनसान एरिया को करेंगे रोशन, बनाएंगे मंदिर व धर्मशाला: हुकुम जैन काका का कहना है कि मंदिर के अवशेष ही अब बचे हुए हैं. ऐसे में चरण चौकी और आसपास बनी हुई छतरियों को संरक्षित कर रहे हैं. वर्तमान में यह एरिया पूरी तरह से सुनसान है. यहां पर जैन समाज के लोगों की आवाजाही बिल्कुल भी नहीं है. ऐसे में हम जैन टूरिस्ट सर्किट बनाकर चांदखेड़ी आने वाले लोगों को भी यहां लाना चाहते हैं. हुकुम जैन काका का कहना है कि वर्तमान में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा चांदखेड़ी तीर्थ में स्थापित है. यह प्रतिमा पाड़ाखोह से निकली है. ऐसे में वहां भी हम एक अच्छा मंदिर और धर्मशाला निर्माण करना चाहते हैं, ताकि लोग चरण चौकी के दर्शन भी कर सकें और वहां पर रात्रि विश्राम और सुबह शांति धारा सहित अन्य पूजा कर सकें.
जैन धर्म की तरह अहिंसा का संदेश देता है पाड़ाखोह: हुकुम जैन काका का यह भी कहना है कि पाड़ाखोह व आसपास का एरिया पूरी तरह से वन क्षेत्र है. वहां काफी संख्या में वन्य जीव रहते हैं, लेकिन यहां पर एक ऐसी दिव्य शक्ति है कि कोई भी व्यक्ति शिकार नहीं कर सकता है. जिस तरह से जैन धर्म में हिंसा का कोई रोल नहीं है, उसी तरह से यहां आने वाला व्यक्ति किसी तरह से कोई शिकार की गतिविधि नहीं कर पता है. यहां तक कि यहां पर आने पर बंदूक भी नहीं चल पाती है.