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लंकापति रावण द्वारा स्थापित भोलेनाथ का ऐसा मंदिर, जहां नाग करता है शिवलिंग के दर्शन - Kundeshwar Mahadev Shiv Temple

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 12, 2024, 1:44 PM IST

फतेहपुर में लंकापति रावण द्वारा स्थापित भोलेनाथ का मंदिर है. इस शिवलिंग का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रृद्धालु यहां पहुंचते है.इस मंदिर में चने के पेड़ की तरह औषधि रुद्रवंती उगती है. जो कि विभन्न रोगों के लिए महाऔषधि है. इस मंदिर में शिवलिंग का दर्शन करने एक नाग हमेशा आता है.

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कुंडेश्वर महादेव शिव मंदिर (Etv Bharat)

फतेहपुर: जिले के खागा तहसील क्षेत्र के मझिलगांव में स्थित कुंडेश्वर महादेव मंदिर में लंकाधिपति रावण द्वारा स्थापित शिवलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रृद्धालु पहुंचते हैं. सावन के हर सोमवार और महाशिवरात्रि पर्व में मंदिर प्रांगण शिव भक्तों की भारी भीड़ से गुलजार रहता है. कुंडेश्वर महादेव की एक मुखी शिवलिंग के मस्तक भाग पर जटाजूट और पूरी खुली गोल आंखें हैं. शिवलिंग की खास विशेषता ये है, कि ये दिन में तीन प्रकार से रंग बदलती है.

नाग कतरा है शिवलिंग का दर्शन:बता दें, कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर खागा से लगभग 9 किलोमीटर इलाहाबाद मार्ग पर स्थित यह कुंडेश्वर महादेव शिव मंदिर भक्तों के लिए कल्पवृक्ष का काम कर रहा है. ऐसी मान्यता है, कि भगवान आशुतोष से शिवलिंग लेकर दैत्यराज लंकापति रावण वापस लौट रहे थे, इन्हें लघुशंका लगी और इस दौरान इन्होंने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया था. बस फिर क्या था यह शिवलिंग यही स्थापित हो गया और रावण फिर इसे उठा न सके. इसके बाद से इसे रावण द्वारा स्थापित शिव मंदिर कहा जाने लगा. विषमुख के मध्य भाग में ओम अंकित है. ब्रह्म लिपि में लिखा मंदिर इसके नागवंश काल में स्थापित होने का संकेत देता है. यहां मान्यता तो यह भी है, कि एक नाग शिवलिंग के दर्शन करने हमेशा आता है, उस समय नागदेव को जिस साधु ने भी देखने का प्रयास किया वह टिक नहीं सका है.

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मंदिर में मिलती है बेशकीमती औषधी रुद्रवंती:यूं तो यहां पूरे साल भक्तों का जमावड़ा रहता है, लेकिन शिवरात्रि और सावन के महीने में दूर-दूर से भक्त भगवान शिव की आराधना के लिए आते है, और प्रशासन भारी भीड़ के आने की संभावना को लेकर सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियां करता है. कुंडेश्वर शिव मंदिर जिसके बारे में यह मान्यता है, कि लंकाधिपति रावण ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी. पुरातत्व विभाग ने प्राचीन शिलालेख के आधार पर इसकी पुष्टि की है, कि नाग वंश ने मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर से सटी 15 हेक्टेयर की झील के आसपास चने के पेड़ की तरह की औषधि रुद्रवंती उगती है. जो कि विभन्न रोगों के लिए महाऔषधि है.

कुदरत ने गंगा व यमुना के दोआबा क्षेत्र के मझिलगांव को अति दुर्लभ महाऔषधि रुद्रवंती के रूप में बड़ा तोहफा दिया है. यह यहां के अलावा कश्मीर के कुछ हिस्से में ही पाई जाती है. मझिलगांव में यह दिव्य औषधि कुंडेश्वर महादेव मंदिर के इर्द-गिर्द विद्यमान है. संतों, आयुर्वेदाचार्यो और स्थानीय लोगों की लगातार मांग के बाद कई मर्ज की इस 'संजीवनी' के संरक्षण के उपाय नहीं किए गए. केंद्रीय औषधीय व सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) अब दुर्लभ प्रजाति की औषधि रुद्रवंती का संरक्षण करेगा.

यह फूल टीबी बिमारी का करता है खात्मा:कुंडेश्वर शिव मंदिर के पास झील में पाए जाने वाले इस पौधे के फूलों के बारे में मान्यता है, कि यह टीबी जैसी बीमारियों का खात्मा करते हैं. क्षेत्रीय लोगों की मांग पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इसे सहेजने के निर्देश दिए हैं. इसमें सफेद रंग के फूल होते हैं. ग्रामीण मानते हैं कि शरीर को शीतलता देने वाली रुद्रवंती नपुंसकता, क्षय, भूख न लगना जैसे बीमारियों में राहत देती है. इस औषधि को लेने के लिए मध्यप्रदेश, झारखंड, हरियाणा सहित अन्य प्रांतों से लोग आते हैं.

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