औघड़नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी से बातचीत (Video credit: ETV Bharat) मेरठ : सावन का महीना है. भगवान भोलेशंकर को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त निरंतर कंधे पर कांवड़ लेकर चल रहे हैं, वहीं लोग अपनी सामर्थ्य के मुताबिक जल कलश लेकर भी आगे बढ़ रहे हैं. अब तो डाक कांवड़ भी चर्चा में रहती है, ऐसे में भगवान भोलेनाथ के भक्तों को यह जानना भी बेहद जरूरी है कि कांवड़ लाने के लिए किन नियम कायदों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.
कांवड़ यात्रा (Photo credit: ETV Bharat) भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त इस महीने में खूब पसीना बहा रहे हैं. पल भर में बारिश और फिर कुछ देर में गर्मी की तपिश झेलते हुए भोले के भक्त निरंतर कांवड़ यात्रा कर रहे हैं. कांवड़ यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं. वहीं कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनका ध्यान रखना बेहद आवश्यक है. ईटीवी भारत ने वेस्ट यूपी के सबसे प्रसिद्ध धर्मस्थलों में गिने जाने वाले औघड़नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी से खास बातचीत की.
कांवड़ यात्रा को लेकर पश्चिमी यूपी के मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित सारंग त्रिपाठी ने बताया कि पहली कांवड़ भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पार्वती जी ने धारण की थी. उनका कहना है कि कैलाश मानसरोवर से जल लाकर मिट्टी के शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा वह करती थीं. उसके बाद ले जाकर विसर्जन करती थीं.
उन्होंने बताया कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए यह पूजा की जाती है. यह कांवड़ यात्रा बहुत ही गोपनीय और रहस्यमयी है. पंडित सारंग त्रिपाठी बताते हैं कि लोग गोपनीयता और रहस्य को भंग कर देते हैं, जबकि अपने परिवार के अलावा किसी पड़ोसी को भी यह जानकारी नहीं होनी चाहिए व्यक्ति आखिर गया कहां है.
कांवड़ यात्रा (Photo credit: ETV Bharat) वह बताते हैं कि पहले लोग कांवड़ लेने जाते थे तो खाद्य सामग्री भी जैसे चना, मुरमुरा, गुड़ आदि होता था तो उसे लेकर जाते थे. वह बताते हैं कि सीमित लोग ही पहले गंगा नदी के समीप गौमुख, हरिद्वार, ऋषिकेश या गढ़ समेत अन्य जगहों पर जाते थे. नियम की भी वह चर्चा करते हुए कहते हैं कि चाहे किसी पीपल के वृक्ष नीचे रुक जाएं, किसी भी छायादार वृक्ष के नीचे रुक जाएं, किसी बस्ती में रुकना वर्जित है. इसी प्रकार से जाना होता है और इसी प्रकार फिर वापसी करनी चाहिए.
वह बताते हैं कि उसके बाद परिक्रमा का जल और व्यवस्थित ढंग से चतुर्दशी का जल शिवजी के मंदिर में चढ़ाएं तो निश्चित ही ऐसे भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है. पंडित सारंग त्रिपाठी बताते हैं कि अब तो कांवड़ का स्वरूप भी बदल गया है. डाक कांवड़ भी आने लगी है. लोग खाते हुए जाते हैं, भंडारे भी लगते हैं. ऐसे में जगह-जगह लोगों के द्वारा लगाए गये भंडारों में रुकना और वहां रुकते ठहरते हुए आना उससे उसका लाभ उनको नहीं मिलता. उस कांवड़ यात्रा का सारा श्रेय सेवा करने वाले को मिल जाता है.
ऐसे में उन्होंने गूलर के पेड़ के नीचे से कांवड़ लेकर नहीं निकलने की सलाह भी दी. वहीं उन्होंने इसकी वजह भी बताई. उन्होंने बताया कि गूलर के पेड़ के नीचे से कांवड़ लेकर आने के बाद किस तरह से इससे कांवड़ खंडित हो जाती है. उन्होंने इसमें लहसून और प्याज का भी परहेज करने की सलाह दी जाती है. बहरहाल, समय के साथ काफी कुछ बदलाव हुआ है. ऐसे में कांवड़ यात्रा का स्वरूप भी बदला है.
कांवड़ यात्रा (Photo credit: ETV Bharat) अब तो कानफोड़ू म्यूजिक के साथ भी अनेकों लोग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं, वहीं कई बार जरा सी बात पर कुछ लोग तो न सिर्फ हंगामा खड़ा कर देते हैं, बल्कि वहीं माहौल तक भी खराब हो जाता है. ऐसे में जरूरी है जो भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके अपने गंतव्य की ओर बढ़ते हैं उन्हें संयमित होकर आगे बढ़ने से ही प्रभु प्रसन्न होंगे और उस धार्मिक यात्रा का निश्चित ही लाभ मिलेगा.
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ. मनोज शर्मा का कहना है कि कोई भी ऐसा धार्मिक कार्य तभी पूर्ण होता है और सफल होता है जब संयमित रहकर पूरी निष्ठा से बिना किसी द्वेष भावना से ईश्वर की भक्ति की जाती है. तभी किसी भी तपस्या का फल भी साधक को प्राप्त हो सकता है.
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