सतना।टोस जल विद्युत परियोजना बकिया बैराज के लिए वर्ष 1990- 91 में रामपुर बघेलान क्षेत्र के 44 गांवों के करीब 5 हजार किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया. खोहर गांव उन 44 गांवों में से एक है, जहां के ग्रामीणों ने सरकार के कहने पर अपनी जमीन टोस जल विद्युत परियोजना बकिया बराज के निर्माण के लिए दे दी. लेकिन खोहर के ग्रामीणों की पीड़ा इन सबसे अलग है. दूसरे डूब प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है लेकिन खोहर के ग्रामीणों को यह भी नसीब नहीं है. क्योंकि खोहर अब तक सरकारी दस्तावेजों में राजस्व गांव के तौर पर ही दर्ज नहीं है.
बकिया बैराज के लिए जमीन देने वालों की व्यथा
बकिया बैराज के निर्माण के लिए अपनी जमीन देने वाले खोहर के ग्रामीणों की समस्याओं की कोई सुध नहीं ले रहा है. रामपुर तहसील व सिरमौर स्थित टोंस हाइडल प्रोजेक्ट कार्यालय के बीच यहां के ग्रामीण 35 साल से चक्कर लगा रहे हैं. बता दें कि सरकार का अनुमान था कि इस परियोजना के लिए 282.5 मीटर बांध बनाने की आवश्यकता है. इसी के अनुरूप जमीन का अधिग्रहण किया गया, लेकिन जब परियोजना ने आकार लिया तो पाया गया कि 280 हजार मीटर की उचाई पर्यात है. बाथ की उचाई 2 मीटर घट जाने से लगभग 2 हजार किसानों की अधिग्रहित जमीन का एक बड़ा हिस्सा डूब क्षेत्र से बाहर आ गया.
डूब क्षेत्र के बाहर की जमीन लौटाने का हुआ था आदेश
डूब क्षेत्र के बाहर हुई जमीन को किसानों को वापस लौटाने का निर्णय लिया और आदेश जारी किए. सरकार ने डूब क्षेत्र से बाहर हुई जमीन को लौटाने के आदेश तो जारी किए लेकिन जमीन वापसी की प्रक्रिया पूरी नहीं की. किसानों ने आंदोलन किए तो वर्ष 2007 में जन दर्शन कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से मुलाकात कर आश्वस्त किया. लेकिन अब तक किसानों को अपनी जमीन के पट्टे नहीं मिल सके.