जबलपुर: पिता की संपत्ति पर मां और बच्चों का अधिकार होता है. कई बार पिता अपने जीवित रहते संपत्ति का हस्तांरण अपने उत्तराधिकारियों को कर देते हैं तो कई बार ऐसा नहीं होता है. ऐसे में यह संपत्ति उसके बच्चों और पत्नी को कैसे मिलती है. इस व्यवस्था में राजस्व विभाग, तहसीलदार और रजिस्ट्रार की क्या भूमिका होती है. इसी को लेकर इस आर्टिकल के जरिए जानेंगे क्या है प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने के नियम.
पिता के जिंदा रहते कैसे मिले वारिसों को संपत्ति
भारत में हिंदू, मुस्लिम और इसाई समुदाय के लिए संपत्ति के उत्तराधिकार के अलग-अलग नियम हैं. लेकिन प्रक्रिया लगभग सभी की एक सी है और यह प्रक्रिया तहसीलदार कोर्ट से ही शुरू होती है. संपत्ति के दो प्रकार होते हैं, पहली संपत्ति पैतृक संपत्ति कहलाती है जो पिता को उनके दादा से मिलती है. इस संपत्ति पर पुत्रों का कानूनी अधिकार होता है. इसे पिता अपनी मर्जी से नहीं बेच सकते हैं. दूसरी संपत्ति अर्जित संपत्ति होती है जो पिता ने खुद कमाई है, पिता इसे जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकता है और वह बेच भी सकता है. इसके अलावा किसी को दान या वसीयत भी कर सकता है.
संपत्ति बंटवारे का जानें नियम
राजस्व मामलों के जानकार पूर्व पटवारी लाल बहादुर सिंह बघेल ने बताया "पति के जीवित रहते हुए यदि वह अपनी संपत्ति अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्री को देना चाहता है तो इसके लिए वकील के माध्यम से एक पारिवारिक बंटवारानामा बनाया जाता है, इसमें किसको कितनी संपत्ति दी जा रही है इसकी जानकारी दर्ज की जाती है. इसके बाद संपत्ति के खसरा और रजिस्ट्री के कागजात के साथ आवेदन पत्र लगाकर तहसीलदार कोर्ट में पेश किए जाते हैं, जहां तहसीलदार पटवारी के माध्यम से जमीन की फर्द बुलवाता है."
पटवारी की रिपोर्ट के बाद होते हैं बयान
जिस जमीन के बारे में बंटवारानामा पेश किया गया है, वह जमीन कहां है कितनी है किसके कब्जे में है और किस-किस को बांटी जा रही है. जब पटवारी अपनी रिपोर्ट बना लेता है तब तहसीलदार सभी हिस्सेदारों को बुलाकर बयान लेता है और बंटवारा कर देता है. इसके बाद संपत्ति के नई खसरे और नक्शे बनाए जाते हैं. बंटवारानामे और खसरे के आधार पर फरियादी रजिस्ट्रार ऑफिस में आवेदन करता है. इसी के आधार पर कृषि की जमीन बिना किसी ड्यूटी के वारिसों के नाम कर दी जाती है लेकिन आवासीय जमीन में ट्रांसफर के लिए स्टांप ड्यूटी चुकानी होती है.
पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति ट्रांसफर कैसे करें
पूर्व पटवारी लाल बहादुर सिंह बघेल का कहना है कि "यदि किसी शख्स की मृत्यु हो गई है तो उसकी संपत्ति उसके वारिसों को ट्रांसफर करने के लिए फोती उठाई जाती है. इसके लिए सबसे पहले संपत्ति के वारिस मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र और एक पंचनामा तैयार करते हैं. इसके बाद संपत्ति के कागजातों के साथ मृतक के उत्तराधिकारी तहसीलदार कोर्ट में बंटवारानामा लगाते हैं. इसमें भी तहसीलदार पटवारी के माध्यम से कागजातों की जांच करवाते हैं और मौके की फर्द बुलवाई जाती है और इसके बाद संपत्ति मृतक के उत्तराधिकारियों को ट्रांसफर कर दी जाती है. इन्हीं कागजातों के आधार पर रजिस्ट्री कार्यालय में भी नाम में परिवर्तन किया जाता है.
- ग्रामीणों को मिला संपत्ति का अधिकार! प्रहलाद पटेल ने बांटे प्रॉपर्टी कार्ड, क्या है स्वामित्व योजना?
- वसीयत मामले में हाई कोर्ट का अनूठा आदेश, रिकार्ड के आधार पर बिल में हो सकते हैं परिवर्तन
दिया जा सकता है अनापत्ति प्रमाण पत्र
नाम ट्रांसफर के दौरान मान लो किसी सदस्य को हिस्सा नहीं चाहिए तो वह एक अनापत्ति प्रमाण पत्र तहसीलदार कोर्ट में देता है. नए कानून के तहत अब पिता की संपत्ति में बेटी का हिस्सा भी होता है लेकिन यदि बेटी हिस्सा नहीं चाहती तो वह तहसीलदार कोर्ट में अनापत्ति प्रमाण पत्र दे सकती है. भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, मुस्लिम उत्तराधिकार अधिनियम इसके अलावा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 जैसे 3 कानून हैं. इन्हीं के आधार पर संपत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के पास पहुंचती है.