शिमला:पहाड़ों की गोद में शिमला के रामपुर और कुल्लू की सीमा पर बसा समेज गांव अब यादों और अतीत के पन्नों में सिमट कर रह गया है. इस गांव में भी स्कूल, मंदिर, खेत-खलिहान, अस्पताल सब थे, लेकिन आज सबकुछ मिट्टी के ढेर में बदल चुका है. 31 जुलाई की आधी रात से पहले तक सब कुछ ठीक ठाक था. लोग आने वाले खतरे से अनजान थे, रात 12 बजे के बाद जब लोग गहरी नींद में थे उस दौरान समेज गांव के ऊपर पहाड़ी पर बादल फटा और तेज बारिश शुरू हो गई. तेज बारिश के कारण गांव के साथ लगते नाले में बाढ़ आ गई. बाढ़ में बहकर आए मलबे, बड़े-बड़े पत्थरों ने पूरे गांव का नामों निशान मिटा दिया.
समेज गांव में आई तबाही को 3 दिन बीत गए हैं, लेकिन यहां पर बाढ़ में लापता हुए 36 लोगों का अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है. परिजन रोज अपनों के मिलने की आस में पत्थराई आंखों से यहां आते हैं, लेकिन रोज उनके हाथ निराशा ही लगती है. आज चौथे दिन भी रेस्क्यू एंड सर्च ऑपरेशन जारी है. जिसमें एनडीआरएफ, पुलिस, आईटीबीवी, आर्मी और सीआईएसएफ के 301 जवान शामिल हैं. वहीं, 5 एलएनटी मशीनें मौके पर तैनात की गई हैं.
सैलाब में गुम गया एक गांव
समेज गांव में हंसते खेलते परिवार थे, आज से कुछ दिन पहले तक पक्के मकानों में रहते थे, लेकिन आसमान से दबे पांव बारिश ऐसी कयामत बनकर बरसी कि आज ये टेंट मे रहने को मजबूर हो गए. आज इनके पास आंसुओं के सिवाय कुछ नहीं है. 31 जुलाई की रात जैसे ही पहाड़ी पर बादल फटा गांव के कुछ लोगों की नींद खुल गई. बाहर गांव के साथ लगते नाले में पानी बढ़ चुका था. ये देखकर कुछ लोग घर छोड़कर भाग गए और दूसरों को भी सूचित कर दिया, लेकिन अफसोस कुछ लोग इतने खुशनसीब नहीं थे. इस गांव की बाढ़ के पहले और बाद की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. 31 जुलाई के बाद और उससे पहले की तस्वीरों को एक साथ देखने पर यकीन नहीं होता कि यहां एक खूबसूरत गांव भी था.
कुल्लू-रामपुर में पड़ता है समेज गांव
समेज गांव कुल्लू और शिमला के रामपुर दो हिस्सों में बंटा हैं. सबसे अधिक नुकसान रामपुर में आने वाले इलाके में हुआ है, क्योंकि गांव के साथ ही एक नाला है. यहां आई बाढ़ में 36 लोग लापता हैं. कुछ स्थानीय लोग हैं, कुछ प्रवासी मजदूर थे, कुछ लोग किराए के घरों में रहते थे. समेज में आई त्रासदी को 3 दिन हो गए हैं, चौथे दिन भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है, लेकिन अभी तक लापता लोगों का कोई सुराग नहीं मिला है.
स्थानीय निवासी विपिन ने बताया कि 'शिमला में आने वाले समेज गांव के क्षेत्र में लगभग 15 मकान थे, जो बाढ़ में बह गए. इसके अलावा यहां पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी था. अब यहां पर सिर्फ एक घर बच गया है, जिसमें अनिता रहती थी.
अनीता ने बताया कि "वह अपने अपने बच्चों के साथ रात को जंगल की ओर भाग गई, जहां पर उन्होंने पूरी रात बिताई. हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में कार्यरत युवक दौड़ कर आए तब वो भी उनके साथ जंगल की ओर अपने बच्चों के साथ भाग गई, जिस कारण 11 लोगों की जान बच गई. रात भर जंगल में एक माता के मंदिर में पनाह ली थी."
वहीं, ग्राम पंचायत प्रधान ने बताया कि,'उन्हें रात को इसकी जानकारी प्राप्त हो चुकी थी, लेकिन सुबह के समय वह यहां पर पहुंचे. यहां बहुमंजिला इमारतें थीं और खेत खलिहान हुआ करते थे एक ही रात में सब तबाह हो चुका था और पूरा इलाका मिट्टी और चट्टानों के ढेर में तब्दील हो गया है.'
कब क्या हुआ
- 31 जुलाई देर रात 12ः15 बजे बादल फटने की घटना.
- झाकड़ी पुलिस स्टेशन में सुबह सवा तीन बजे के करीब पंचायत उप प्रधान ने घटना की सूचना दी.
- हेड कांस्टेबल संजीव की अगुवाई में पुलिस की टीम घटना स्थल के लिए साढ़े तीन बजे रवाना हुई.
- करीब पौने चार बजे ग्रीनको कंपनी की ओर से एसडीएम रामपुर निशांत तोमर को सूचना मिली.
- चार बजे एसडीएम ने एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पैरामिलिटरी फोर्स और पुलिस से संपर्क कर लिया गया था.
- करीब पांच बजे एसडीएम रामपुर अपनी टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हुए.
- सुबह 5 बजकर 40 मिनट पर एसडीएम घटनास्थल पर पहुंचे.
- खड्ड के दूसरी तरफ 10 लोग फंसे हुए थे, जिन्हें रेस्क्यू करने में करीब चार घंटे लगे.
- सुबह 7 बजे के करीब सभी बचाव दल घटना स्थल पहुंचे.
- सुबह सवा दस बजे के करीब उपायुक्त अनुपम कश्यप और पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी घटना स्थल पर पहुंचे.
- सुबह साढ़े दस बजे तक सभी लोगों को रेस्कयू कर लिया गया.
85 किलोमीटर के एरिया में सर्च ऑप्रेशन
इस घटना के तीन दिन बीत चुके हैं. एनडीआरएफ की टीमें दिन रात जमीन की मिट्टी, चट्टानों को बदल बदल कर लापता जिंदगियों को तलाश कर रही है. एनडीआरएफ जवानों के हाथ, जूते, कपड़े मिट्टी से सने हैं, लेकिन कई घंटों के बाद भी अभी तक हाथ में सिर्फ निराशा लगी है. समय बीतने के साथ साथ लापता लोगों के जिंदा मिलने की उम्मीद अब लगभग खत्म हो रही है, लेकिन कई किलोमीटर तक फैले इस पहाड़ के मलबे में 36 लोगों की तलाश मलबे में गुम हुई सूई को ढूंढने के बराबर है, क्योंकि एक बहुत बड़े इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाना पड़ रहा है. अपनों को खोने वाले की नजरें मलबे के ढेर की तरफ निगाह टिकाए हुए हैं. आपदा प्रभावित क्षेत्र को जिला प्रशासन ने क्षेत्र को छह हिस्सों में बांटा है. पहले हिस्से में एनडीआरएफ की टीम, दूसरे हिस्से में भारतीय सेना, तीसरे में सीआईएसएफ, चौथे में आईटीबीपी, पांचवें और छठे हिस्से में पुलिस, होम गार्ड और त्वरित कार्रवाई दल की तैनाती की गई है. पूरे 85 किलोमीटर के दायरे में ये सर्च ऑपरेशन चल रहा है. शिमला जिला उपायुक्त अनुपम कश्यप ने कहा कि "यहां करीब 85 किलोमीटर के इलाके में बचाव कार्य किया जाना है. जिसे देखते हुए प्रभावित क्षेत्र को 6 हिस्सों में बांटा गया है. पीड़ित परिवारों की हर संभव मदद के लिए प्रशासन की टीमें जुटी हुई हैं"
एक पल भी नहीं सोए प्रत्यक्षदर्शी
गांव के साथ लगते एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट भी बाढ़ की चपेट में आया था. जहांं नाइट डयूटी के दौरान तीन कर्मी थे. इनमें सुरक्षा कर्मी पूर्ण, इंजीनियर पदम और इलेक्ट्रिशियन हितेष शामिल थे. जब रात को बादल फटा तो तीनों ने इसकी सूचना प्रोजेक्ट के आला प्रबंधन को दी. तीनों यहां से निकलना चाहते थे, लेकिन बाहर पानी अधिक होने के कारण वह अंदर ही फंस गए थे. सुबह सात बजे ये तीनों यहां से रेस्क्यू किए गए. पूर्ण ने बताया कि "जब अचानक पानी खड्ड में बढ़ गया तो हमने बाहर जाने की कोशिश करनी चाही, लेकिन तीनों ने फिर फैसला लिया कि टनल के अंदर ही रुककर सुबह तक का इंतजार करें. रात को बिजली भी नहीं थी, ऐसे में गांव के बारे में अंदाजा नहीं लगाया जा रहा था. ये रात हमारे लिए भयानक रात थी. हम पूरी रात जागते रहे और एक पल के लिए भी नहीं सोए."
8 स्कूली छात्र भी लापता हैं
समेज स्कूल में पढ़ने वाले कार्तिक ठाकुर, अर्णव, राखी ने बताया कि, 'उनके दोस्त अरुण, आरुषि, रितिका, अंजलि समेत उनके कई दोस्त लापता है. उनकी राधिका दीदी का भी कोई पता नहीं चल पाया है. वो सभी राधिका दीदी के पास पढ़ते थे. उनकी राधिका दीदी उनका होमवर्क करवाती थी. उन्होंने अगले दिन अपनी दीदी को ढूंढा, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं लगा. अब उनका होमवर्क कौन करवाएगा.'
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले अश्विनी चौहान ने बताया कि, 'उन्हें अपने साथियों को खो कर बहुत बुरा लग रहा है. उनका स्कूल भी बंद हो गया है. उस रात को बहुत बारिश हो रही थी. रातभर वो सो नहीं पाए. बारिश रुकने के बाद वो पांच बजे स्कूल के पास नीचे आए, लेकिन उन्हें कोई नहीं मिला. स्कूल पानी में डूबा हुआ था.'