अयोध्या: लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में भव्य रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बावजूद फैजाबाद संसदीय सीट से बीजेपी की पराजय की देशभर में खूब चर्चा हो रही है. हालांकि राम मंदिर के लोकार्पण के समय कयास लगाए जा रहे थे कि, भाजपा को इसका लाभ मिलेगा. और वह आगामी लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. अयोध्या ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने बहुत खराब प्रदर्शन किया. और उसे 28 सीटें गंवानी पड़ीं. इस चुनाव में बीजेपी की पराजय को लेकर अयोध्या के संतों ने अपनी राय रखी है.
आस्था पर भारी जातीयवाद : महंत परमहंस दास
तपस्वी छावनी अयोध्या के पीठाधीश्वर महंत परमहंस दास कहते हैं, 'अयोध्या से बीजेपी का हारना दुखद है. जिन्होंने राम भक्तों पर गोली चलवाई उनका प्रत्याशी जीत गया. और जिन्होंने मंदिर बनवाया उनका प्रत्याशी हार गया. ऐसा ही कल्याण सिंह जी के साथ भी हुआ था. इस बार आस्था पर जातीय समीकरण भारी पड़ गए. पहले मुस्लिम वोटर सपा, बसपा और कांग्रेस में बंट जाता था, लेकिन इस बार उन्होंने एक होकर सपा के लिए वोट किया. यादवों ने भी एक होकर भाजपा के खिलाफ वोट किया. वहीं सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद दलितों का वोट भी पाने में सफल रहे. लल्लू सिंह का संविधान बदलने संबंधी बयान भी उन पर भारी पड़ा. इस चुनाव में बीजेपी में भितरघात भी पराजय का एक कारण है. उपेक्षा के कारण संघ और हिंदूवादी संगठनों में भी निराशा थी, जिसके कारण उन्होंने चुनाव में सक्रियता नहीं दिखाई.'
विकास के नाम पर वोट नहीं मिलता: जगतगुरु रामदिनेशाचार्य
हरिधाम पीठ अयोध्या के संत जगतगुरु रामदिनेशाचार्य कहते हैं 'मुझे लगता है कि इस हार के लिए पार्टी को समीक्षा करनी पड़ेगी. देखना पड़ेगा कि किन बिंदुओं पर चूक हो गई. हालांकि अयोध्या विधानसभा सीट से बीजेपी की जीत हुई है. बाकी चार विधानसभाओं में पार्टी की हार हुई है. मुझे लगता है कि, बीजेपी जातीय समीकरणों को ठीक से समझ नहीं पाई. देश में विकास का कोई मुद्दा नहीं होता है. अयोध्या में जो विकास हुआ है, उतना पांच सौ वर्ष में नहीं हुआ है, उसके बाद भी यहां से पार्टी हार गई. इससे साफ है कि विकास कोई मुद्दा नहीं है. असल मुद्दे जातीय समीकरण हैं. हिंदू जातियों में बंटा हुआ है.'