सागर : रहली में स्थित 1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में मौजूद गणेश प्रतिमाओं में से एक नृत्य मुद्रा में है, तो एक त्रिभंग मुद्रा में. जानकार बताते हैं कि रहली का सूर्य मंदिर कलचुरी कालीन है. कलचुरीकाल के शासक शिव जी की उपासना और शिव परिवार का पूजन करते थे.
शिव परिवार को साथ गणपति पूजन की परंपरा
डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे कहते हैं, '' रहली सूर्य मंदिर में प्रतिमाएं दीवारों पर लगी हैं, वह शैव धर्म से संबंधित हैं. शिव परिवार के सदस्य के रूप में भगवान गणेश लोकप्रिय रहे हैं. परिवार में शिव-पार्वती के बाद गणेश सर्वप्रिय रहे हैं. गणपति को गणों का नायक और विघ्नहर्ता भी कहा गया है. भगवान गणेश और शिव परिवार की प्रतिमाओं से स्पष्ट हैं कि यहां शिव परिवार की पूजा की परंपरा थी. समकालीन शासक चंदेल, परमार और प्रतिहार भी शैवधर्म को मानते थे और शिव परिवार में गणेश जी की पूजा की परंपरा विशेष रूप से थी.''
मूर्तिकला से स्पष्ट की गणेश प्रतिमाएं कलचुरीकाल की
रहली क्षेत्र के सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं हैं, उससे स्पष्ट है कि ये सूर्य मंदिर कलचुरीकाल का रहा होगा. ये प्रतिमाएं कलचुरीकाल की हैं और वर्तमान मेंं
सूर्य मंदिर अपने मूल स्वरूप में नहीं है. लेकिन मंदिर में नटराज, देवी, गणेश और विष्णु की प्रतिमाएं संग्रहित की गई हैं. रहली क्षेत्र में कल्चुरियों का शासन रहा है. यहां जो प्रतिमाएं मिली वह सभी कलचुरी काल की हैं. उनमें कलचुरी काल की मूर्तिकला स्पष्ट नजर आती.
विशेष नृत्य मुद्रा में भगवान गणेश
कलचुरी कालीन जिन मंदिरों का निर्माण किया गया, उनमें गणेश प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं. उमा महेश्वर की प्रतिमा में शिव परिवार गणेश, कार्तिकेय और शिव के गण दर्शाए गए हैं. इसके साथ रहली सूर्य मंदिर में गणेश जी की स्वतंत्रत प्रतिमाएं भी नजर आती हैं. सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं शिलाफलक पर लगाई गई हैं, वह स्वतंत्र प्रतिमाएं हैं. इन प्रतिमाओं को दो स्तंभों के बीच में दर्शाया गया है.