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सागर लोकसभा सीट का मिजाज, यहां की जनता को बाहरी से ज्यादा सागरी पर भरोसा, पढ़े राजनीतिक इतिहास - Sagar seat Political history - SAGAR SEAT POLITICAL HISTORY

एमपी के बुंदलेखंड के सागर सीट की बात करें तो यहां की जनता ज्यादातर स्थानीय नेताओं पर ही अपना विश्वास जताया है. इस सीट पर अभी तक 17 चुनाव हो चुके हैं. जिसमें से 13 बार सागर की जनता से शहर के नेता को ही विजयी बनाया है. पढ़िए सागर से जुड़ी राजनीतिक इतिहास के बारे में...

SAGAR SEAT POLITICAL HISTORY
सागर लोकसभा सीट का मिजाज, यहां की जनता को बाहरी से ज्यादा सागरी पर भरोसा, पढ़े राजनीतिक इतिहास

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 14, 2024, 6:05 PM IST

सागर।आपने एक कमर्शियल विज्ञापन में देखा होगा कि टेढ़ा है पर मेरा है. ऐसा ही कुछ सागर संसदीय सीट के लोगों का मिजाज समझ आया है, क्योंकि पिछले 72 सालों के लोकतांत्रिक इतिहास में सागर संसदीय सीट पर मतदाताओं ने ऐसे नेता को ज्यादातर चुना है, जो सागर शहर का मूल निवासी हो. सिर्फ चार बार ऐसे हालात बने है कि सागर से बाहर का व्यक्ति सांसद चुना गया हो. चुनावी इतिहास पर नजर डालें, तो अब तक हुए 17 चुनावों में सागर के उम्मीदवार पर ही सागर की जनता ने भरोसा जताया है और संसद पहुंचाया है.

सागर लोकसभा सीट का इतिहास

बुंदेलखंड के इकलौते संभागीय मुख्यालय सागर की बात करें, तो सागर लोकसभा सीट लोकसभा के पहले चुनाव से अस्तित्व में है और भले ही ये सीट अब भाजपा के गढ़ के रूप में जानी जाती हो, लेकिन 1952 से लेकर 1984 तक ज्यादातर इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. बीच में कुछ ऐसे मौके जरूर आए कि सागर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. सागर संसदीय सीट के 17 चुनावों में कांग्रेस ने 7 और भाजपा ने 8 बार जीत दर्ज की है. 1952 से लेकर 1957 और 1962 तक लगातार तीन बार सागर ने जीत दर्ज की. कांग्रेस का विजय रथ 1967 में जनता पार्टी के रामसिंह अहिरवार ने रोका, लेकिन 1971 में फिर एक बार कांग्रेस की सहोद्राराय चुनाव जीती और आपातकाल के बाद 1977 में जनसंघ के नर्मदा प्रसाद राय सांसद बने.

हालांकि 1980 में फिर सहोद्राबाई राय ने ये सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी, लेकिन उनके निधन के कारण 1981 में उपचुनाव हुए और भाजपा के आरपी अहिरवार चुनाव जीते. इसके बाद 1984 में कांग्रेस के नंदलाल चौधरी ने चुनाव जीता और 1989 में भाजपा के शंकरलाल खटीक ने कांग्रेस से सीट छीन ली. 1991 में फिर एक बार कांग्रेस के आनंद अहिरवार सांसद चुने गए, लेकिन फिर कांग्रेस सागर की सीट एक भी बार नहीं जीत पायी और 1996 से लेकर 1998,1999 और 2004 में भाजपा के वीरेन्द्र खटीक और 2008 के परिसीमन के बाद 2009 में भाजपा के भूपेन्द्र सिंह, 2014 में भाजपा के लक्ष्मीनारायण यादव और 2019 में भाजपा के राजबहादुर सिंह चुनाव जीते.

सागर के स्थानीय प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा

जहां तक सागर संसदीय सीट के मतदाताओं की बात करें, तो यहां के मतदाताओं ने सागर शहर के स्थानीय प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा जताया है. सागर लोकसभा सीट के मतदाताओं ने सिर्फ चार ऐसे लोगों को चुना, जो सागर शहर के निवासी नहीं है, बल्कि 13 बार ऐसे लोगों को चुनाव जो सागर के स्थानीय निवासी रहे है. 1971 और 1980 के चुनाव में सहोद्राबाई राय कांग्रेस से चुनाव जीती, जो मूलरूप से दमोह जिले की पथरिया की रहने वाली थी और सागर के नरयावली विधानसभा के कर्रापुर में बस गयी थीं. वहीं 1977 में जनता पार्टी के नर्मदा प्रसाद राय चुनाव जीते, जो सागर नहीं बल्कि ढाना के निवासी थे. इसके बाद 2009 में भूपेन्द्र सिंह चुनाव जीते, जो सागर शहर के नहीं बल्कि नरयावली विधानसभा के बमोरा गांव के निवासी थे.

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क्या कहते हैं जानकार

सागर के मतदाताओं के इस मिजाज को लेकर वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि 'इसे इस तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए कि सागर की जनता ने किसी बाहरी को मौका नहीं दिया. बल्कि इस तरह से देखा जाना चाहिए कि प्रमुख राजनीतिक दलों ने टिकट कहां के नेताओं को दिए. कांग्रेस और भाजपा की बात करें, तो ज्यादातर सागर संसदीय सीट से दोनों दलों ने सागर के स्थानीय नेताओं को उम्मीदवार बनाया और वो नेता तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से चुनाव जीतने में सफल रहे. आप देखे कि सहोद्राबाई राय प्रमुख रूप से दमोह जिले की थी, लेकिन कांग्रेस जैसे दल ने भरोसा जताया, तो सागर के मतदाताओं ने उन्हें चुना.

इसके बाद नर्मदा प्रसाद राय की बात करें, तो 1977 में कांग्रेस के खिलाफ माहौल था और जनता पार्टी जिसे उम्मीदवार बनाती, वो चुनाव जीतता. जनता पार्टी ने नर्मदा प्रसाद राय को उम्मीदवार बनाया और वो चुनाव जीते. जहां तक 2009 में भूपेन्द्र सिंह की बात है, तो उनका गांव भले ही सागर विधानसभा या शहर में नहीं आता है, लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति सागर शहर में की है. इस आधार पर माना जा सकता है कि राजनीतिक दलों के चयन के आधार और राजनीतिक माहौल के आधार पर मतदाताओं ने प्रत्याशियों को जिताया है.

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