सागर। जब से अयोध्या में भगवान रामलला विराजमान हो गए और पूरा देश राममय है. तब बुंदेलखंड के सागर जिले के जैसीनगर विकासखंड में पिछले 119 साल से होती आ रही रामलीला चर्चा का विषय बनी है. रामलीला की शुरूआत, ब्रिटिशकाल में जब अंग्रेजों के अत्याचार चरम पर थे और धार्मिक आयोजन पर सख्ती रहती थी. तब गांव के बुजुर्ग जमींदार छोटेलाल तिवारी ने ग्रामीणों के साथ मिलकर की थी. यहां कोई रामलीला मंडली रामलीला करने नहीं आती है, बल्कि गांव के लोग मिल जुलकर खुद पात्रों का चयन करते हैं और कई दिनों की रिहर्सल के बाद रामलीला करते हैं. रामलीला में सीता स्वयंवर के दिन बहुत भीड उमड़ती है और टेलीविजन युग में रामलीला के मंचन के प्रति दीवानगी नजर आती है.
कहां होती है 100 साल से ज्यादा पुरानी रामलीला
सागर से करीब 25 किमी दूर जैसीनगर विकासखंड के देवलचोरी गांव में पिछले 119 साल से रामलीला का मंचन पूरे बुंदेलखंड मशहूर है. देवलचोरी की रामलीला को बुंदेलखंड की सबसे प्राचीन रामलीला भी कहा जाता है. खास बात ये है कि आमतौर पर शारदीय नवरात्र में रामलीला का मंचन होता है, लेकिन यहां पर बसंत पंचमी से रामलीला की शुरूआत होती है और एक हफ्ते तक रामलीला का मंचन होता है. बसंत पंचमी से शुरू हुई रामलीला के मंचन में मंगलवार को सीता स्वयंवर हुआ. जिसे देखने भारी संख्या में स्थानीय ग्रामीण और दूसरे गांव के लोग पहुंचे. सीता स्वयंवर में जब भगवान राम ने धनुष तोडा, तो पूरा गांव जय श्री राम के उद्घोष से गूंज उठा और मानो पूरा इलाका राममय हो गया.
अंग्रेजी हुकुमत में शुरू हुआ मंचन
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि रामलीला की शुरूआत गांव के मालगुजार पंडित छोटेलाल तिवारी ने की थी. तब अंग्रेजी हुकुमत के अत्याचार चरम पर थे और धार्मिक आयोजनों पर भारी सख्ती रहती थी. लेकिन छोटेलाल तिवारी ने एक बार तय कर लिया, तो गांव के ग्रामीण भी उनके साथ खडे हो गए और रामलीला की रूपरेखा बनायी गयी. तय किया गया कि रामलीला के सभी किरदार गांव के ही लोग करेंगे, बाहर से ना तो रामलीला मंडली बुलायी जाएगी और ना ही किसी कलाकार को बुलाया जाएगा. सबकुछ तय हो जाने के बाद गांव के लोगों में से रामलीला के प्रमुख पात्रों का चयन किया गया. पात्रों के चयन के बाद करीब एक महीने तक रिहर्सल चली और 119 साल पहले ये शुरूआत हुई.