सागर। अपने जीवन की जमा-पूंजी दान कर बुंदेलखंड जैसे पिछडे़ इलाके में देश की आजादी के पहले विश्वविद्यालय की स्थापना करने वाले डाॅ हरीसिंह गौर को लेकर सागर यूनिवर्सिटी और नागपुर विश्वविद्यालय के बीच करार होने जा रहा है. यह करार डॉ हरिसिंह गौर के महान व्यक्तित्व और कृतित्व पर काम करने के लिए किया गया है. जिसमें डाॅ हरीसिंह गौर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध किया जाएगा. गौरतलब है कि डाॅ हरीसिंह गौर सागर यूनिवर्सटी के संस्थापक होने के साथ-साथ नागपुर यूनिवर्सटी के भी कुलपति रहे हैं और दिल्ली यूनिवर्सटी के संस्थापक कुलपति थे.
इस पहल को डाॅ हरीसिंह गौर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है, क्योंकि डाॅ हरीसिंह गौर का योगदान वकालत के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में काफी ज्यादा रहा है. इसके अलावा नागपुर उनकी कर्मभूमि रही है. ब्रिटिश काल में नागपुर से विधानपरिषद के सदस्य चुने गए. दोनों विश्वविद्यालय जल्द ही इस करार को मूर्त रूप देने जा रहे हैं.
सागर यूनिवर्सटी और नागपुर यूनिवर्सटी के बीच करार
सागर विश्वविद्यालय में स्थापित की गई गौर पीठ के समन्वयक प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत ने पिछले दिनों नागपुर यूनिवर्सटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर संजय दूधे से मुलाकात की. डाॅ हरीसिंह गौर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करने के लिए चर्चा की गयी. जिसको लेकर दोनों यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक सहमति बन गयी है. जल्द ही दोनों यूनिवर्सियी एक अकादमिक समझौता करके काम शुरू करेंगे. प्रोफेसर दिवाकर सिंह राजपूत का कहना है कि डॉ. हरीसिंह गौर विश्व के उन महान शिक्षाविदों में शामिल हैं, जिन्होंने अपना जीवन शिक्षा और देश लिए समर्पित कर दिया.
सागर यूनिवर्सटी की स्थापना के पहले डाॅ हरीसिंह गौर दिल्ली यूनिवर्सियी और नागपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति रह चुके हैं. डाॅ हरीसिंह गौर 1922 से 1926 तक नागपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे. इसलिए नागपुर यूनिवर्सटी के साथ डाॅ गौर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शोधपरक जानकारी का प्रकाशक किया जाएगा. राष्ट्र संत तुकडो जी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर संजय दूधे ने भी इस पहल पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि डॉक्टर गौर के व्यक्तित्त्व और कृतित्व पर शोधपरक कार्य करना सौभाग्य की बात होगी.