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रास नहीं आया परदेस-गांव लौट खेती को बनाया रोजगार! जानें, रुपेश की पूरी कहानी - SUCCESS STORY

उच्च शिक्षा और विदेश में नौकरी, जब माटी की पुकार सुनी तो माथे पर तिलक लगाकर उतर गया खेत में. ऐसी है रुपेश की कहानी.

Rupesh Kumar left job abroad and earning lakhs by farming in village of Hazaribag
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 6 hours ago

हजारीबागः ये जिला खेती के लिए पूरे राज्य में जाना और पहचाना जाता है. यहां कई ऐसे युवक मिल जाएंगे जो खेती को उद्योग का दर्जा देने की कोशिश कर रहे हैं. इन्हीं में एक हैं रूपेश कुमार. जो विदेश में नौकरी करने के बाद, उसे छोड़ खेती को अपना रोजगार बनाया और आज 40 से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं.

समाज में कई ऐसे लोग हैं जो प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं, उन्हें में एक हैं रुपेश कुमार. जो पिछले कई वर्षों से घर से बाहर रहकर नौकरी कर रहे थे. आईटीआई की डिग्री लेने के बाद उन्हें वर्कशॉप इंजीनियर के पद पर म्यान्मार में नौकरी लग गयी. इसके पहले वह हैदराबाद समेत कई महानगरों में नौकरी भी कर चुके हैं. कोरोना के दौरान वे स्वदेश लौटे और खेती करना शुरू किया.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टः प्रगतिशील किसान रुपेश कुमार के साथ खास बातचीत (ETV Bharat)

आज उनकी मेहनत और लगन का आलम यह है कि वर्तमान समय में 13 एकड़ जमीन लीज पर लेकर खेती कर रहे हैं. जिला के सदर प्रखंड के चंदवार में खेती कर रहे हैं. हजारीबाग से चूरचू जाने वाले रोड में संत कोलंबस कॉलेज से लगभग 10 किलोमीटर दूर यह गांव है. मूल रूप से रूपेश हजारीबाग के खिरगांव मोहल्ले में रहते हैं.

रूपेश कुमार बताते हैं कि कोरोना के दौरान वे हजारीबाग पहुंचे. घर वालों ने बाहर जाने को मना कर दिया और रोजगार के सारे रास्ते बंद हो गए. खेतीहर परिवार से संबंध रखने के कारण घर वालों ने उद्योग के तौर पर खेती करने का रास्ता दिखाया. शुरुआती दौर में कुछ जमीन लेकर खेती शुरू की. जब इसमें मुनाफा दिखा और दिलचस्पी बढ़ी तो बड़े स्तर पर खेती करने का निर्णय लिया.

वर्तमान समय में 13 एकड़ जमीन लीज पर लेकर खेती कर रहे हैं. उनके ससुर पिछले 25 साल से खेती कर रहे हैं. उनसे जानकारी इकट्ठा की और फिर इस व्यवसाय में जुट गए. उनकी कोशिश यही रहती है कि जो भी फसल मौसम के अनुसार बाजार में आता है वो पहली फसल दें. उन्होंने बताया कि फिहाल लगभग 7 एकड़ जमीन में मटर की खेती की है.

मटर सिर्फ हजारीबाग के बाजार ही नहीं बल्कि बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत के राज्यों तक पहुंच रहा है. शुरुआती दौर में 250 रुपया प्रति किलो के दर पर मटर बिकना शुरू हुआ, अभी 70 से 80 रुपए किलो बिक रहा है. व्यवसायी खेत तक पहुंचाते हैं और पैसा देकर मटर ले जा रहे हैं.

सबसे खुशी की बात है कि खेती के जरिए व्यवसाय शुरू किया गया. 40 लोगों को रोजगार से जोड़ा गया है. सबसे अधिक महिलाएं काम कर रही हैं. जिससे गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. उन्हें काम के लिए शहर नहीं जाना पढ़ रहा है. रूपेश का कहना है कि शहर के कई युवा खेती कर रहे हैं. खेती के दौरान समस्या का सामना भी पड़ता है. सभी युवा मिलजुल कर एक मंच में बैठे और समस्या पर चर्चा करें तो और भी अधिक मुनाफा वाला व्यवसाय खेती बन सकता है.

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