वाराणसी : जल परिवहन में गाजीपुर से बनारस के बीच 19 किमी का हार्ड स्टेटा बड़ा बाधक बना हुआ है. इसकी वजह से पीएम मोदी का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. साल 2014 में बनारस से सांसद बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उस दौरान उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को सड़क, रेल, वायु यातायात के अलावा जल मार्ग से भी जोड़ने की प्लानिंग की. इससे गंगा किनारे बसे इस शहर में कोलकाता से लेकर हल्दिया तक और अन्य जगहों से भी बड़े-बड़े जल वाहनों को लाना आसान था. बेहद अहम होने के बावजूद यह योजना उम्मीद के मुताबिक परवान नहीं चढ़ पाई.
लगभग 184 करोड़ रुपये की लागत से साल 2018 में बनकर तैयार हुए रामनगर बंदरगाह को आज भी बड़े जहाजों का इंतजार रहता है. इसकी बड़ी वजह गंगा में पानी की कमी और गाजीपुर से बनारस के बीच 19 किलोमीटर तक हार्ड स्टेटा है. यह बड़े जहाजों को बनारस आने से रोक रहा है. इसकी वजह से 6 साल में महज 6 मालमाहक जहाज ही वाराणसी पहुंच सके हैं. आइए जानते हैं बनारस में बड़े जहाजों के न आने के पीछे का कारण क्या है...
कोयला लेकर आ रहा एक और जहाज :दरअसल वाराणसी में जल परिवहन को बढ़ाने के लिए पीएम मोदी के विजन के बाद भारतीय अंतर्देशीय जल मार्ग प्राधिकरण का कार्यालय यहां खुला. वर्तमान में कार्यालय के प्रभारी आरसी पांडेय का कहना है कि बनारस में ऑफिस तो खुला, लेकिन हेड ऑफिस अभी भी नोएडा में है. सभी निर्णय वहीं से लिए जाते हैं. वाराणसी में हाल ही में अभी एक नया मालवाहक जहाज आने वाला है. यह कोयला लेकर आ रहा है. उन्होंने बताया कि प्लानिंग तो बहुत की जा सकती है, लेकिन दिक्कत यह है कि गाजीपुर से बनारस के बीच लगभग 19 किलोमीटर का एरिया बेहद ही डेंजर जोन में है. इसमें हार्ड स्टेटा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. यह बड़े जहाजों को जल मार्ग से बनारस आने से रोकता है.
बड़े पत्थरों को हटाना बेहद जरूरी :कार्यालय प्रभारी ने बताया कि नदी में पानी कम हो जाता है तो बालू भी ऊपर आने लगता है. बालू का खनन कराया जा सकता है लेकिन पत्थर के जो बड़े-बड़े टुकड़े आ रहे हैं, उनको हटाना ज्यादा महत्वपूर्ण है. विस्फोट या कटर के जरिए ही उन्हें काटकर अलग किया जा सकता है. हेड ऑफिस स्तर से टेंडर प्रक्रिया को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है.