लखनऊ : पुरानी पेंशन को 2005 तक विज्ञापित पदों पर नौकरी का मुद्दा बनाकर सरकार पर दबाव बनाने के बाद राज्य कर्मचारियों का जोश हाई है. राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने पुरानी पेंशन बहाली को अपनी जीत बताते हुए अब संविदा कर्मचारियों को परमानेंट करने, वेतन विसंगति सहित कई मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन की रणनीति बनाई है.
दरअसल प्रदेश में एक लाख से अधिक संविदा कमर्चारी अलग अलग विभागों और निगम व अन्य सरकारी संस्थाओं में कार्यरत हैं. पिछले काफी समय से ये लोग विनियमितीकरण की मांग करते रहे हैं. इसके अलावा वेतन विसंगति से भी पांच से अधिक कमर्चारी अलग अलग विभागों के अफसरों से पीड़ित हैं. वेतन विसंगति दूर करने के वित्त विभाग व साथ ही मुख्य कार्यालय से प्रयास किए जाते हैं, लेकिन ज्यादातर विभागों में समस्या बनी रहती है. वित्तीय वर्ष के अंत से पहले ही कमर्चारी के देयकों को ठीक करने और वेतन विसंगति दूर करने की बात कही जाती है, लेकिन इस पर ठीक ढंग से काम नहीं हो पाता है. बाद में सेवानिवृत्त होने के अवसर पर भी कमर्चारियों को परेशान होना पड़ता है. इन्हीं सब समस्याओं को लेकर राज्य कमर्चारी संयुक्त परिषद ने सरकार पर दबाव बनाने की योजना बनाई है.
राज्य कमर्चारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने कहा है कि मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद भी प्रदेश में कार्यरत हजारों आउटसोर्स कर्मचारियों का न्यूनतम मानदेय निर्धारित नहीं हो पा रहा है. मानदेय निर्धारण विगत दो वर्षों से सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग एवं श्रम एवं सेवायोजन विभाग की पत्रावलियों में धूल खा रहा है. सरकारी विभागों में सृजित पदों के तुलना में विज्ञापित पदों पर नियमानुसार गठित चयन समिति के माध्यम से चयनित संविदा शिक्षकों को सरकार नियमित नहीं कर रही है. 2001 के बाद मौजूदा सरकार अपने दो बार के कार्यकाल में संविदा, आउटसोर्स वर्क चार्ज दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण की कोई योजना नहीं ला पाई है. लैब टेक्नीशियन, विपणन निरीक्षक आपूर्ति निरीक्षक, सहित दर्जनों संवर्गों की वेतन विसंगतियों पर मुख्य सचिव समिति अभी तक फैसला नहीं कर पाई है.