लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान राजपूतों की नाराजगी पश्चिम से लेकर पूरब तक चर्चा का विषय बनी रही. भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के बयानों ने क्षत्रियों को इतना नाराज किया कि वह बीजेपी को हराने में जुट गए. पश्चिम से यह प्रकरण शुरू हुआ तो इसका असर प्रतापगढ़ में पहले पहुंचा.
जहां राजा भैया के नाराज होने के बाद करणी सेना से लेकर राजपूत के अनेक संगठन मैदान में उतर आए. दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल ने लगातार यह कहा कि योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा.
इस बात का जवाब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने पुरजोर तरीके से नहीं दिया तो क्षत्रीय और नाराज हो गए और इसका साफ असर उत्तर प्रदेश के वोटिंग पैटर्न पर नजर आया. उत्तर प्रदेश की कुल वोटरों में लगभग 6% ठाकुरों की उपस्थिति मानी जाती है. कहीं-कहीं यह 10 से 15% भी हैं. इसके अलावा यह सशक्त जाति वर्ग अन्य जातियों के वोट पैटर्न पर भी प्रभाव रखता है.
यूपी में खराब प्रदर्शन की 5 प्रमुख वजह
- पार्टी काडर कार्यकर्तांओं की उपेक्षा, बाहरी पर भरोसा
- संगठन और सरकार में तालमेल का अभाव
- टिकट बंटवारे में मनमानी.
- सिर्फ कागजों पर रही पन्ना प्रमुखों और बूथ कमेटियों की सक्रियता
- अधिकारियों के आगे मंत्रियों तक का बेअसर होना.
रूपाला की बयानबाजी ने बिगाड़ा खेल:केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने क्षत्रिय समाज को लेकर 22 मार्च 2024 को बयान दिया था कि राजपूत समाज भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात में मुश्किलें पैदा कर रहा है. रूपाला ने पिछले महीने वाल्मिकी समाज के एक कार्यक्रम में कहा था कि अंग्रेजों ने हम पर राज किया. राजा यानी कि राजपूत भी उनके आगे झुक गए. उन्होंने (राजाओं ने) उनके (अंग्रेजों) साथ रोटियां तोड़ीं और अपनी बेटियों की शादी उनसे की.
रूपाला ने क्या दिया था बयान:राजकोट से बीजेपी उम्मीदवार रूपाला ने कहा था कि, 'दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ लेकिन वे झुके नहीं.' इसके बाद उत्तर प्रदेश में लगातार क्षत्रियों ने बीजेपी का विरोध करना शुरू किया. पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई पंचायत का आयोजन किया गया. भाजपा नेता संगीत सोम भी इस सब में शामिल बताए गए.
क्षत्रियों की नाराजगी पर चुप रहे सीएम योगी:क्षत्रियों की नाराजगी के इस अभियान के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने बहुत कोशिश की कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी खुद आगे आएं. मगर यह प्रयास नाकाफी रहा. पुरुषोत्तम रुपाला पर कोई एक्शन ना होने की वजह से गुस्सा वहीं का वहीं बना रहा.