रतलाम। मध्य प्रदेश की प्रमुख फसल सोयाबीन अब 15 से 20 दिन की अवस्था में पहुंच चुकी है. वर्तमान की स्थिति में फसल में खरपतवार प्रबंधन की आवश्यकता होती है. अधिकांश किसान खरपतवार नाशकों का स्प्रे कर खरपतवार का नियंत्रण करते हैं, लेकिन रतलाम क्षेत्र में बारिश नहीं होने व खेतों में नमी की कमी होने पर यह खरपतवार नाशक स्प्रे कारगर नहीं होते हैं. ऐसे में पारंपरिक विधि डोरे व करपे चलाकर सोयाबीन की फसल में खरपतवार का नियंत्रण किया जाता है.
पहले बैलों की जोड़ी से चलाया जाता था डोरे
बता दें कि सोयाबीन उत्पादक किसान डोरे चलाने के लिए बैलों की जोड़ी का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब ट्रैक्टर में जुगाड़ के पतले पहिए लगाकर सोयाबीन की खड़ी फसल में डोरे चलाने का कार्य किया जाता है. सोयाबीन की फसल में डोर चलाने से न सिर्फ खरपतवार का नियंत्रण होता है, बल्कि पौधे की जड़ों में नमी भी संरक्षित होती है. जो बारिश नहीं होने की स्थिति में पौधे को सूखने से बचाती है.
खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान चलाते हैं डोरे
सोयाबीन की फसल में डोरे चलाने अथवा करपे चलाने का विशेष महत्व होता है. शुरुआती दौर में बैलों की मदद से सोयाबीन के पौधों की लाइनों के बीच डोरे चलाए जाते थे. जिससे सोयाबीन की लाइनों के बीच उगी खरपतवार नष्ट हो जाती थी. बीते कुछ वर्षों में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाइयां का उपयोग शुरू हो गया, लेकिन खेत में नमी नहीं होने या बारिश का दौर नहीं होने की स्थिति में खरपतवार का नियंत्रण डोरे चला कर ही किया जाता है.
डोरे चलाने से सोयाबीन की फसल को होता है लाभ