रतलाम: आमतौर पर हमारे आसपास ऐसी घटनाएं सामने आती है. जिसमें किसी को दिल का दौरा पड़ गया या कोई पानी में डूब गया हो या फिर अचानक बेहोश हो गया है. ऐसी अपातकालीन स्थिति में किसी ने उनकी छाती को लगातार पंप कर और कृत्रिम श्वास देकर फिर से होश में ला दिया हो. हमे लगता है की यह तो पुनर्जीवित हो गया है. जी हां इसे हम पुनर्जीवन ही कहेंगे. मेडिकल की भाषा में इसे सीपीआर देना कहते है, जो किसी व्यक्ति को पुनर्जीवन देने जैसा है.
सही समय पर सीपीआर देकर बचा सकतें है जिंदगी
सीपीआर यानी कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन यह एक आपातकालीन जीवन रक्षक प्रक्रिया है, जो तब की जाती है जब दिल की धड़कन रुक जाती है या व्यक्ति श्वास नहीं ले पा रहा हो. यह एक प्राथमिक चिकित्सा प्रणाली है. जिसे मेडिकल स्पेशलिस्ट के अलावा आम लोग भी आपातकालीन स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को दे सकते हैं, लेकिन सीपीआर कब देना है और सही तरीका आपकी जानकारी में होना चाहिए. यदि हम सही समय पर दिल का दौरा पड़ने, पानी में डूब जाने, करंट लगने या किसी अन्य कारण से बेहोश हुए व्यक्ति की धड़कन और सांस रुक जाने पर सीपीआर दे तो हम कई जिंदगियां बचा सकते हैं.
इस समय देना चाहिए सीपीआर
दरअसल हम सीपीआर देते समय पीड़ित व्यक्ति की सांस चलाने और खून के बहाव को लगातार जारी रखने का प्रयास करते हैं. सांस रुक जाने या दिल की धड़कन बंद हो जाने पर 3 से 7 मिनट में दिमाग की सेल मृत होना शुरु हो जाती है. यही सीपीआर देने का गोल्डन समय होता है. हार्ड को पम्प करने और मुंह से कृत्रिम श्वास देने से दिल और फेफड़े फिर से काम करने लगते हैं और दिमाग तक ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पहुंचती रहती है.
जानिए कब और कैसे दे सीपीआर
रतलाम जिला अस्पताल के सीएमएचओ और हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर आनंद चंदेलकर ने ईटीवी भारत से चर्चा में बताया कि "सबसे महत्वपूर्ण यह है कि किन मामलों में सीपीआर देना है. कोई व्यक्ति अचानक बेहोश हो गया है और उसकी सांसे रुक गई है. किसी व्यक्ति को करंट लग गया है या पानी में डूबने की वजह से उसकी धड़कन बंद हो चुकी है या उसे दिल का दौरा पड़ने से उसकी सांसे रुक गई है. इन मामलों में बिना देरी किए पीड़ित को किसी ठोस जगह पर सीधा लेटा कर सीपीआर देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाए. नाक, मुंह और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाए कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं होगी.''
इस तरह से दें सीपीआर
सीपीआर में दो क्रिया की जाती है. पहली छाती को दबाना और दूसरी मुंह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं. पहली क्रिया में पीड़ित के सीने के बीचो बीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है. पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियों से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रख कर छाती पर पंप करें. धड़कने शुरू नहीं होने पर मरीज को मुंह से कृत्रिम श्वास दें. हाइजिन का ध्यान रखने के लिए रुमाल अथवा पतले कपड़े का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. इस प्रक्रिया के दौरान हथेली से छाती को 1-2 इंच दबाते रहें. पंप करने और कृत्रिम सांस देने का एक अनुपात होता है. जिसमें 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है और दो बार कृत्रिम सांस दी जाती है. कृत्रिम श्वास देते समय देते समय नाक को दोनों उंगलियों से बंद कर देना चाहिए ताकि श्वास फेफड़ों में ठीक से भर सके. ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है, जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे. जब मरीज खुद से सांस लेने लगे, तब ये प्रकिया रोकनी होती है.