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राप्ती का रौद्र रूपः ग्रामीण खुद ही उजाड़ रहे आशियाने, 600 बीघे धान और गन्ना के खेत भी नदी में समाए - Rapti river wreaks - RAPTI RIVER WREAKS

श्रावस्ती में हुई भारी बारिश के चलते राप्ती नदी में घरों के साथ धान और गन्ना के खेत भी बह गये. ग्रामिण खुद अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ सामान सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं.

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सामान सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाते ग्रामिण (photo credit- Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 1, 2024, 10:15 AM IST

श्रावस्ती:राप्ती नदी की कटान ने तबाही मचा रखी है. सोमवार को ईटीवी भारत की टीम जब इकौना तहसील के लयबुडवा गांव में पहुंची तो वहां का नजारा कुछ और ही था.लोग अपने घरों को खुद ही उजाड़ रहे हैं. महिलाएं गृहस्थी का सामान ऊंचे स्थानों पर ढो रही हैं. ट्रैक्टर ट्राली से सामानों को सड़क पर पहुंचाया जा रहा है. दो-चार वर्ष पूर्व लगाए गए पेड़ भी काटे जा रहे हैं. पांच-छह वर्ष के बच्चे भी बड़ों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं. इस गांव के बुर्जुगों ने बताया, कि उन्होंने 14 बार कटते-उजड़ते देखा है.

गांव के पूर्व ग्राम प्रधान अलख राम यादव का मकान कट रहा है. कटान की त्रासदी झेल रहे लोग बताते हैं कि 'वो वहां उनका खेत था, अब वहां राप्ती की धारा बह रही है. नदी के घटते जलस्तर के साथ शुरू हुई कटान ने नदी किनारे बसे ग्रामीणों की नींद छीन ली है. लोग दिन रात जाग कर नदी की धारा की निगरानी करने के साथ अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ सामान सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं.

लैबुड़वा निवासी कंधई लाल ने बताया, कि नदी गांव को काट रही इसलिए मकान उजाड़ कर सामानों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं. शिवकुमार, अलखराम, देवेंद्र प्रताप, राघव राम, राकेश आदि भी अपना सामान सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा रहे हैं. इसके अलावा सर्वजीत, दिनेश कुमार, छेदी राम, चिंता राम ,हरीराम, अखिलेश , ओमप्रकाश सहित 50 लोगों के मकान, सार्वजनिक शौचालय और प्राथमिक विद्यालय भी कटान के कगार पर हैं. सार्वजनिक शौचालय और विद्यालय से नदी की दूरी लगभग 20 मीटर शेष रह गई है. चिंताराम,छेदीराम,अमिराका प्रसाद, फौजदार, केशवराम, अलखराम,शिवराम समेत कई किसानों के लगभग 600 बीघे खेत को राप्ती नदी निगल चुकी है.

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ग्रामीणों का छलका दर्द:ग्रामवासी अलखराम यादव ने बताया, कि कटान रोकने के लिए पिछले दो वर्षों से जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक गुहार लगाई गई. तत्कालीन एसडीएम आरपी चौधरी ने दो वर्ष पूर्व कटान को रोकने के लिए नदी में लगाए गए परक्यूपाइन को अपर्याप्त बताते हुए अन्य जरूरी उपाय करने की रिपोर्ट भी भेजी. लेकिन, सुनवाई नहीं हुई. दिनेश कुमार कहते हैं, कि समय रहते गंभीर प्रशासनिक प्रयास होते तो आज कटान की चपेट में आकर किसान भूमिहीन होने से बच जाते और अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ने की नौबत भी नहीं आती. यहीं की रहने वाली मीना पत्नी शिवकुमार कटान के भय से अपने घर को उजाड़कर घर-गृहस्थी के सामानों को समेट रही थी. यह कहते हुए वह रो पड़ी कि राप्ती मझ्या खेत काट लिहिन, घरी मा नाय राहे दिहिन चाहत हैं. राप्ती मइया तो हम लोगन के दुश्मन बन गई हैं.

चंदा बटोर कर ग्रामीणों ने कटान रोकने का किया प्रयास:गांव के पूर्व ग्राम प्रधान अलखरम यादव ,राघवराम, शिवराम बताते हैं कि जुलाई से हम लोग गांव के लोगों से लगभग 15 हजार रूपये चंदा एकत्र कर नदी की कटान को झाड़ झंखाड़ पाटकर रोकने का प्रयास किया था. लेकिन, राप्ती की लहरों के आगे उनका सारा प्रयास विफल रहा. नतीजतन हम लोग बसते उजड़ते बर्बाद हो गए हैं. प्रशासन की ओर से कहीं घर बनाने के लिए ठौर भी नहीं मिल रहा है. जबकि गांव के कटान की स्थिति से हर प्रशासनिक अधिकारी वाकिफ है.

क्या कहते हैं अधिकारी:इकौना तहसील के एसडीम ओम प्रकाश कहते हैं, नदी की कटान से जो प्रभावित हुए हैं, उन्हें शासन द्वारा सहायता दी जा रही है. आवास के लिए जमीन भी प्रशासन उपलब्ध करा रहा है. जब से कटान तेज हुई है लगातार तहसील प्रशासन पल-पल की निगरानी कर रहा है. कटान पीड़ितों की हर संभव मदद की जाएगी.

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