छपरा/पटना :भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टरराजेंद्र प्रसाद की आज यानी 3 दिसंबर को 140वीं जयंती है. राजेंद्र बाबू का जन्म तत्कालीन सारण जिले वर्तमान में सिवान के जीरादेई में महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर 1884 में कायस्थ परिवार में हुआ था.
बचपन से ही होनहार थे राजेंद्र प्रसाद: राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में होनहार थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनसे बड़े एक भाई महेंद्र प्रसाद और तीन बहने थीं. इसीलिए वे सबके दुलारे थे. बचपन में ही मां की मृत्यु के बाद उनकी बड़ी बहन भगवती देवी ने उनका पालन पोषण किया था. उनकी शादी 12 वर्ष अल्पायु में ही राजवंशी देवी से हो गई थी.
शिक्षक से करियर की शुरुआत:उनकी शुरुआती शिक्षा छपरा के जिला स्कूल में हुई थी. उसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए. वे प्रेसिडेंसी कॉलेज, पटना और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी अध्ययनरत रहे. उन्होंने अपना करियर एक शिक्षक के रूप में शुरू किया. उसके बाद उन्होंने वकालत भी की.
छपरा जिला स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई: देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को फारसी हिंदी और गणित सीखने के लिए 5 साल की उम्र में एक मौलवी के संरक्षण में रखा गया था. बाद में उन्हें छपरा जिला स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वे अपने बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के साथ शिक्षा ग्रहण करते थे. उसके बाद टी के घोष एकेडमी पटना में उन्होंने अध्ययन किया.
1911 में आधिकारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल: देश रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद 1906 में वार्षिक सत्र के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े, जिसमें उन्होंने एक स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया. उसके बाद 1911 में जब कोलकाता में फिर वार्षिक सत्र आयोजित किया गया तो आधिकारिक तौर पर वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. 8 अगस्त 1942 को जब भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया.
3 साल जेल में रहे कैद: उसके बाद भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी हुई तो राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया. पटना के सदाकत आश्रम से बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. लगभग 3 साल तक वह जेल में बंद रहे. 2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 मनोनीत मंत्रियों के अंतरिम सरकार के गठन के बाद उन्हें खाद और कृषि विभाग में नियुक्त किया गया. 11 सितंबर 1946 को हुए संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के संविधान को मंजूरी दी गई. उसके बाद राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए.
डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र:1952 और 1957 में दो बार देश के राष्ट्रपति चुने गए. भारत की आजादी के 12 वर्षों के बाद 14 मई 1962 में उन्होंने राष्ट्रपति से इस्तीफा दे दिया और इस्तीफा देने के बाद पटना लौट आए. डॉ राजेंद्र बाबू के तीन पुत्र जिसमें मृत्युंजय प्रसाद, धनंजय प्रसाद और जनार्दन प्रसाद हमेशा लाइमलाइट से दूर रहे. मृत्युंजय प्रसाद ने तो बाकायदा चुनाव लड़कर जीत भी दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद भी वह राजनीतिक में नहीं रहे.
स्कूल के छात्र खुद को महसूस करते हैं गौरवान्वित: डॉ राजेंद्र बाबू पढ़ने में बचपन से ही मेधावी थे. एक बार परीक्षा में एग्जामिनर ने लिखा था, एग्जामिनर से बेहतर एग्जामिनी है. देश रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद छपरा के जिस स्कूल में पढ़ा करते थे. वहां के शिक्षक और छात्र अपने आप को काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं कि वह जिस स्कूल में पढ़ते हैं, उसी में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र बाबू भी पढ़ा करते थे. वहीं अगर स्कूल की दशा और दिशा की बात की जाए तो स्कूल का नवनिर्माण पूरे जोर शोर से हो रहा है.
"देश के पहले राष्ट्रपति ने यहां से पढ़ाई की थी. हमें बहुत गर्व होता है कि हम यहीं से पढ़ाई कर रहे हैं."-तारुषी, छात्रा
"इस स्कूल में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पढ़े थे. यहां की पढ़ाई काफी अच्छी है. मैं कॉमर्स की छात्रा हूं. रोज स्कूल आती हूं."-नंदिनी गुप्ता, छात्रा
पटना में बीता अंतिम समय:देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की विद्वता जितनी लोकप्रिय है, उतनी ही उनकी सादगी भी लोकप्रिय है. उनका व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि आज भी उनकी सादगी भरी व्यक्तित्व को आदर्श पुरुष के लिये मिसाल दी जाती है. सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय थे. सिवान के जीरादेई गांव में जन्मे डॉ राजेंद्र प्रसाद का अंतिम समय पटना में बीता. पटना में अंतिम समय में जहां वह रहते थे, उस जगह को देखने मात्र से ही उनके सादगी भरे व्यक्तित्व का चेहरा झलक पड़ता है.
खपरैल के मकान में रहते थे पूर्व राष्ट्रपति:डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहने का गौरव हासिल है. 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति मनोनीत किए गए, फिर 1952 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 1957 में भी चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने. 1962 में उन्होंने संन्यास की घोषणा की. 13 मई 1962 को राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद बिहार लौट आए. बिहार लौट पर वह खपरैल के मकान में रहने लगे. आज यहां बिहार विद्यापीठ है और यह मकान संग्रहालय के रूप में अवस्थित है.
जेपी रह गए थे भौंचक्के: डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र मनीष सिन्हा बताते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद जब पटना रहने लगे. लोकनायक जेपी को पता चला कि भारत देश के पूर्व राष्ट्रपति अब खपरैल के मकान में रह रहे हैं तो वह भौंचक्के हो गये थे. इस मसले पर उन्होंने समाज की बुद्धिजीवियों से चर्चा की और फिर समाज ने चंदा इकट्ठा कर राजेंद्र प्रसाद के लिए खपरैल के मकान के चंद दूरी पर ही छत का मकान बनवा दिया.
"फिर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इसी मकान में रहने लगे और जीवन की अंतिम सांस भी उन्होंने लोगों द्वारा बनवाए गए मकान में ही ली. आज खपरैल का मकान राजेंद्र संग्रहालय -1 और छत का मकान राजेंद्र संग्रहालय 2 के नाम से जाना जाता है."- मनीष सिन्हा, डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र