जयपुर:राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत में लंबित अधिकांश मामलों के प्रभारी अधिकारी पर्याप्त सहयोग नहीं कर रहे हैं. उनकी लापरवाही से अदालत को मामले की सुनवाई टालनी पड़ती है. प्रभारी अधिकारी कई मामलों में न तो संबंधित दस्तावेज सरकारी वकीलों को उपलब्ध करा रहे हैं और ना ही तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करते है. इस कारण सरकारी वकीलों को भी अदालत से समय मांगना पड़ता है.
अदालत ने मुख्य सचिव को कहा कि वे शपथ पत्र पेश कर बताएं कि इस व्यवस्था में सुधार के लिए क्या किया जा रहा है. अदालत ने मुख्य सचिव को यह भी आदेश दिए हैं कि वह सभी विभागों को निर्देश जारी करें कि कर्मचारियों पर की जाने वाली विभागीय कार्रवाई जल्दी से जल्दी पूरी की जाए. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश सरदार मल यादव की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
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अदालत ने महाधिवक्ता और प्रमुख विधि सचिव को भी कहा है कि वे विभागों के मुखियाओं को निर्देश दें कि वे विधि अधिकारियों और प्रभारी अधिकारियों को जरूरत पड़ने पर अदालत में उपस्थित होने के लिए कहे. अदालत ने प्रभारी अधिकारियों को चेताया है कि यदि अब उनके सहयोग के अभाव में कोर्ट सरकार के खिलाफ आदेश देगी तो उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी संबंधित प्रभारी अधिकारी की होगी और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी होगी.
बारह साल बाद भी नहीं किया निर्णय:अदालत ने कहा कि शिक्षा विभाग में कार्यरत याचिकाकर्ता को नवंबर, 2011 में चार्जशीट दी गई और मार्च, 2014 में जांच पूरी होकर रिपोर्ट भी सौंप दी गई, लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि करीब 12 साल बीतने पर भी अब तक उस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हो सका. इसके लिए याचिकाकर्ता को अदालत में याचिका दायर करनी पड़ी और गत 31 जनवरी को वह रिटायर भी हो गया, जबकि सिविल सेवा नियम के तहत जांच रिपोर्ट मिलने के तत्काल बाद उस पर अंतिम निर्णय हो जाना चाहिए था. अदालत ने कहा कि प्रत्येक नियोक्ता को प्रयास करना चाहिए कि वह कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच छह माह में पूरी करे. राज्य सरकार के खिलाफ अधिकांश मुकदमे दायर होते हैं. ऐसे में प्रभारी अधिकारियों की जवाबदेही बड़ा सवाल है. प्रभारी अधिकारी को निष्क्रिय रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, यदि किसी विभाग में काम अधिक है तो अतिरिक्त प्रभारी अधिकारी लगाए जा सकते हैं.