नई दिल्ली:दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षकों के संगठन दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को पत्र लिखकर मांग की है कि प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को लागू करते हुए प्रिंसिपल पदों का रोस्टर रजिस्टर तैयार कराकर ही प्रिंसीपल पदों के विज्ञापन निकाले जाएं. साथ ही जिन कॉलेजों ने ओबीसी कोटे के अंतर्गत सेकेंड ट्रांच के पदों को अभी तक नहीं भरा गया है उनको भी 31 जुलाई 2024 से पूर्व रोस्टर पास कराकर पदों को विज्ञापित कर 31 दिसम्बर 2024 तक भरा जाए.
दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम के चेयरमैन प्रोफेसर के.पी. सिंह ने बताया है कि 12 जुलाई 2024 तक कॉलेजों में 4600 सहायक प्रोफेसरों की स्थायी नियुक्ति हुई है. इसके अलावा कुछ कॉलेजों में नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है. उन्होंने बताया है कि अभी तक जो नियुक्तियां हुई हैं वहां कॉलेजों द्वारा निकाले गए उनके विज्ञापनों में भारत सरकार की आरक्षण नीति व डीओपीटी के निर्देशों को सही से लागू नहीं किया गया था. उनमें शॉर्टफाल, बैकलॉग और विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई प्रोफ़ेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकारते हुए करेक्ट रोस्टर नहीं बनाया गया है, जिससे एससी,एसटी, ओबीसी अभ्यर्थियों को जिस अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए था नहीं दिया गया. डीयू के तमाम कॉलेजों ने सामाजिक न्याय और भारतीय संविधान के नियमों की सरेआम अवहेलना की गई है.
प्रोफेसर के.पी. सिंह ने बताया है कि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्गों (ईडब्ल्यूएस आरक्षण) का 10 फीसदी आरक्षण फरवरी-2019 में लागू किया गया था, जिसे विश्वविद्यालय और कॉलेजों ने स्वीकार करते हुए इसको रोस्टर में शामिल भी कर लिया. कॉलेजों ने ईडब्ल्यूएस रोस्टर को फरवरी 2019 से ना बनाकर उसे एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण के पहले लागू करते हुए रोस्टर बनाकर नियुक्तियां की हैं. इतना ही नहीं उन्होंने 10 फीसदी आरक्षण के स्थान पर किसी-किसी कॉलेज ने 14, 15 या 20 फीसदी तक आरक्षण दे दिया है, जिससे कि एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण कम कर दिया गया और ईडब्ल्यूएस आरक्षण बढ़ाकर दिया गया है. इसी तरह पीडब्ल्यूडी आरक्षण को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है.
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