गिरिडीहः जिला में बगोदर प्रखंड के खेतको पंचायत में अंग्रेजी हुकूमत के समय से चैती दुर्गोत्सव मनाया जाता आ रहा है. यहां मनाई जाने वाली चैती दुर्गा पूजा का इतिहास धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है. सौ साल पूर्व संतान प्राप्ति की कामना के साथ गांव के एक दलित परिवार के द्वारा चैती दुर्गोत्सव की शुरुआत की गई थी.
जिला के कई प्रखंड़ों में बासंतिक दुर्गोत्सव मनाया जाता है. जिसकी तैयारियां जोरों से चल रही है. कारीगरों के द्वारा जहां प्रतिमाओं को अंतिम रुप दिया जा रहा है वहीं पूजा कमेटियां इसको सफल बनाने में जुटी हुई हैं. जिले के बगोदर प्रखंड की बात करें तब यहां के खेतको गांव में अंग्रेजों के शासनकाल से चैती दुर्गा पूजा मनाया जाता आ रहा है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ सौ साल पूर्व एक दलित दंपती के द्वारा पूजनोत्सव की शुरुआत की गई थी. जब उनको संतान की प्राप्ति हुई तब से यहां सार्वजनिक रुप से पूजा होने लगी.
समय के साथ साथ यहां मंदिर का निर्माण हुआ और धीरे-धीरे चैती दुर्गोत्सव का विस्तार हुआ. आज यहां बड़े पैमाने पर इस मौके पर मेला भी लगता है, जिसमें खेतको और आसपास के गांवों के अलावा पड़ोसी प्रखंड डुमरी और बिष्णुगढ़ के गांवों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां का दर्शन कर मेला का लुत्फ उठाते हैं. स्थानीय निवासी सह पुजारी शंभु पांडेय बताते हैं कि गांव के मगन रजक को संतान नहीं था. संतान कामना के लिए चैती दुर्गोत्सव की शुरुआत की, इसके बाद दंपती को संतान की प्राप्ति हुई.
इसके बाद जब मगन रजक ने पूजा के आयोजन में असमर्थता जताई तब ग्रामीणों ने सार्वजनिक रुप से दुर्गोत्सव मनाना शुरू किया. इसके बाद से लेकर आज चैत्र नवरात्र के मौके पर चैती दुर्गा पूजा यहां मनाया जाता आ रहा है. पुजारी शंभू पांडेय बताते हैं कि पूजनोत्सव के प्रति आस्था है कि यह जो भी कामना की जाती है वह पूरी होती है. पहले यहां बलि का प्रचलन भी था जो किसी कारणवश बंद कर दिया गया और अब यहां वैष्णवी पूजा की जाती है.