लखनऊ: पहले के समय में एनेस्थीसिया देने के लिए लोग अफीम का इस्तेमाल करते थे. अफीम की मात्रा अधिक होने के कारण शल्य चिकित्सा के दौरान मरीज की मौत हो जाती थी. एनेस्थीसिया की शुरुआत 16 अक्टूबर सन् 1846 से हुई. इसके बाद एनेस्थीसिया के नए आयाम आएं. नए उपकरण व नई तकनीक आयी. और आज के तारीख में एनेस्थीसिया क्षेत्र में अत्याधुनिक उपकरणों और तकनीक के जरिए मरीजों की शल्य चिकित्सा हो रही है.
बगैर एनेस्थीसिया के कोई भी ऑपरेशन हो ही नहीं सकता है. इसलिए एनेस्थीसिया का एक महत्वपूर्ण योगदान शल्य चिकित्सा में है. यह बातें शनिवार को एसजीपीजीआई के एनेस्थीसिया विभाग के 37 वें स्थापना दिवस कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि कोच्चि के अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख डॉ. प्रवीण सिंह ने कहीं.
एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टरों ने दी जानकारी (video credit- etv bharat) उन्होंने कहा कि पहले से आज में बहुत कुछ बदलाव हुआ है. लेकिन आज के समय में नवीन तकनीक और नवीन उपकरण है. लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि एनेस्थीसिया की विशेषज्ञ उस तकनीक में एक्सपर्ट हो. ऑपरेशन के दौरान कई बार मरीज की जान चली जाती है. पहले यह अधिक होता था लेकिन, अब इसकी संख्या कम हो गई है. फिर भी आज के समय में मरीज का एक नहीं बल्कि कई ऑपरेशन हो जाते हैं. कई ऑपरेशन होने का मतलब जान का खतरा बना रहता है. लेकिन, यह निर्भर करता है कि जो डॉक्टर सर्जरी कर रहा है, वह एक्सपर्ट हो और जो डॉक्टर एनेस्थीसिया दे रहा है, वह एक्सपर्ट हो. अगर एक्सपर्ट्स के हाथों ऑपरेशन होगा तो जान जाने का खतरा भी कम होता है.
प्री एनेस्थीसिया टेस्ट होना बेहद जरूरी:एनेस्थीसिया विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रो. प्रभात तिवारी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा, कि मरीज का आज के समय में जागरूक होना बहुत जरूरी है. किसी भी सर्जरी से पहले मरीज का प्री एनेस्थीसिया टेस्ट होना बेहद जरूरी है, ताकि मरीज की पूरी हिस्ट्री विशेषज्ञ के पास हो. उसे क्या बीमारी है. उसकी कौन सी दवा चल रही है. इससे पहले उसका कौन सा ऑपरेशन हो चुका है. वर्तमान में उसने कौन सी दवा का सेवन किया है, कहीं कोई एलर्जी तो नहीं है. तमाम बातों की काउंसलिंग होना बेहद जरूरी है.
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एनेस्थीसिया एक्सपर्ट की देखरेख में होती है सर्जरी:प्रो. प्रभात तिवारी ने कहा, कि पिछले 37 वर्ष से पीजीआई का एनेस्थीसिया विभाग लगातार प्रगति कर रहा है. विभाग विविध आयाम, नवीन तकनीक और अत्याधुनिक उपकरण से लैस है. एनेस्थीसिया विभाग का सबसे महत्वपूर्ण रोल होता है. चाहे ऑपरेशन छोटा हो या बड़ा हो, लेकिन एनेस्थीसिया एक्सपर्ट के बगैर ऑपरेशन नहीं हो सकता. पहले के समय में मरीज को अफीम या पेयपदार्थ पिलाकर सर्जरी की जाती थी. ऐसे में मरीज जिये या मरे उसे मतलब नहीं होता था, लेकिन आज के समय में नवीन तकनीक है, अत्याधुनिक उपकरण है. एनेस्थीसिया के एक्सपर्ट है. जिनकी देखरेख में सर्जरी होती है.
प्रो. सुजीत कुमार गौतम ने बताया, कि एनेस्थीसिया में नवीन तकनीक आ रही है. हर मरीज की काउंसलिंग की जाती है. काउंसलिंग के बाद उस मरीज को कितना एनेस्थीसिया देना है, यह निर्भर करता है. मरीज के ऑपरेशन के दौरान कौन सी प्रक्रिया का इस्तेमाल होना है. तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए एनेस्थीसिया का डोज दिया जाता है. हर मरीज की अलग हिस्ट्री रहती है. अलग चीज रहती है. इस आधार पर ऑपरेशन के दौरान एनेस्थीसिया दिया जाता है.
नोडल फाउंडर डॉ. संदीप खुबा ने बताया, कि आज के इस प्रोग्राम में मुख्य अतिथि डॉ. प्रवीण ने एनेस्थीसिया की उत्पत्ति से लेकर अब तक हुए नई तकनीक और आयाम के बारें में चर्चा की. एनेस्थीसिया विभाग की अहमियत बहुत अधिक है. बगैर एनेस्थीसिया के कोई भी सर्जरी नहीं हो सकती है. हर कोई जानता है. लेकिन, अब इसमें नवीन तकनीक और नवीन उपकरण भी आ गए हैं. इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह है, कि जितने भी एनेस्थीसिया की एक्सपर्ट है वह इस कार्यक्रम में शामिल हुए और सभी ने अपना अनुभव एक दूसरे से साझा किया है. नवीन विधाओं पर चर्चा हुई है.
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