प्रयागराज :संगम नगरी प्रयागराज कुंभ का महत्व अनादि काल से है. कुंभ में देशभर से श्रद्धालु के अलावा आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के अनुसार विभिन्न अखाड़ों के साधु संत भी शामिल होते हैं. अखाड़ा का मतबल साधुओं का परिवार है और इस परिवार में हजारों साधु संत होते हैं. सांधु-सन्यासियों का यह कुनबा देश-दुनिया में फैला हुआ है. कुंभ जैसे महापर्व के दौरान ये सभी एक स्थान पर एकत्र होते हैं. ऐसे में इन्हीं संभालने के लिए अखाड़े के चुनिंदा साधुओं को कामकाज समेत तमाम जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. यह अखाड़ा स्तर से उनकी आंतरिक प्रबंधकीय व्यवस्था होती है.
वरिष्ठता के आधार पर होता है कार्य का विभाजन
साधुओं को उनकी वरिष्ठता के आधार पर कार्य का विभाजन किया जाता है. उनके साथ कुशल स्वयंसेवकों यानी साधुओं की टीम तैनात कर दी जाती है. अखाड़ों में प्रबंधकीय व्यवस्था की शुरुआत नागाओं से होती है. नागाओं को जिम्मेदारी उनकी परिपक्वता के हिसाब से सौंपी जाती है. इस क्रम में सबसे पहले वस्त्रधारी नागा आते हैं.
दीक्षा लेने के बाद उनको ‘वस्त्रधारी’ या ‘भंडारी’ भी कहा जाता है. वस्त्रधारी का काम अपने गुरु की सेवा करना है. अखाड़ों में नागा की दूसरी स्थिति नागा ‘दिगंबर’ की है. थानापति नागाओं की उच्च पदवियों में से एक है. थानापति से आशय अखाड़े की किसी शाखा का कार्यकर्ता बनना होता है. थानापति का प्रमुख कार्य अखाड़े की संपत्ति की देखभाल करना होता है. प्रबंध व्यवस्था के लिए समस्त अखाड़ों का दायित्व आठ वरिष्ठ सन्यासियों पर होता है. ‘अष्टप्रधान’ चार श्रीमहंत और चार महंत होते हैं. कामकाज में इनकी सहायता के लिए आठ उपप्रधान होते हैं. जिन्हें ‘कारबारी’ कहा जाता है. अखाड़ों की बैठक आदि बुलाने का अधिकार एक वरिष्ठ संन्यासी पर होता है.