भोपाल।सोशल मीडिया के इस दौर में जब किसी नेता की लोकप्रियता भी उसके सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स से आंकी जाती हो. तब बीजेपी के पूर्व सांसद और राजनेता प्रभात झा ऊंगली पर गिने जाने वाले उन नेताओ में से थे, जो व्हाट्सअप के दौर में भी चिट्ठियां लिख रहे थे. किसी से ना मिल पाने के बाद उसे मिले आशीष की चिट्ठी...किसी को बधाई में लिखी गई चिट्ठी...किसी चिट्ठी में बदलते गांव का रग रुप और रुह लौटा लाने का जिक्र होता. बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी का सांसद रहते हुए उन्होंने अपने बेटे की शादी की चिट्ठी भी अपने हाथ से लिखी थी और उस लैटरपेड में जिसमें वो कार्यकर्ताओं को नसीहतें लिखा करते थे.
जब चिट्ठी में लिखा तुम्हारा राजनीतिक चूर्ण भी कमाल कर गया
बीजेपी संगठन में काम कर रहे और पेशे से चिकित्सक डॉ प्रदीप त्रिपाठी को लिखी चिट्ठी में प्रभात झा कहते हैं, 'आयुर्वेदिक चूर्ण तो कमाल करता था. तुम्हारा राजनीतिक चूर्ण भी कमाल कर रहा है. तुम्हें पर्दे के पीछे रहकर काम करने पर हार्दिक बधाई. वैसे बिना चूर्ण के तुम घर आओगे तो अच्छा लगेगा. मेरे पास आशीष के सिवा कुछ नहीं है और वो मैं देता रहूंगा.'
मैं उनसे मिल नहीं पाया उस दिन और वो चिट्ठी छोड़ गए
बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल बताते हैं लोकसभा चुनाव के बाद प्रभात झा कार्यालय आए थे. किसी कारणवश मैं उनसे मिल नहीं पाया. जिसके बाद हमारी जब फोन पर बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे लिए अपना स्नेह तुम्हारे कक्ष में छोड़ आया हूं. वो स्नेह मेरी थाती है. उसे सहेजा है, जिसमें वो मेरे लिए लिखते हैं, मैं आशीष को आशीष के सिवाय क्या दे सकता हूं.
चिट्ठी क्या गांव को बदलने लिखी कविता थी
लेखक पत्रकार संतोष मानव ने भी प्रभात झा की एक चिट्ठी साझा की है. इस चिट्ठी में प्रभात जी लिखते हैं, मुझे इस दीपावली पर गांव का निश्छल प्रेम चाहे. सोयी चौपाल को जगाने वाला चाहिए. एक की बिटिया ससुराल जाए और पूरा गांव रोए ऐसा माहौल चाहिए. गांव के खलिहान में खेलते बच्चे जिनमें ना विषमता का भाव हो ना जातियता का. दीपावली की शुभकामनाओं की इस चिट्ठी में प्रभात झा आखिरी में लिखते हैं, एक दिया अपने गांव के नाम उस शहर में जलाइए, जहां आप रहते हैं. वचन दीजिए हम सब गांव बचाएंगे.