देहरादून: शिकारी वन्यजीवों का जंगल में सर्वाइवल यहां मौजूद शिकार पर भी निर्भर करता है. जंगल में पर्याप्त भोजन मिलने पर शिकारी वन्यजीवों के लिए यह स्थिति उनकी संख्या बढ़ने के लिए मददगार होती है, लेकिन अगर शिकारी वन्यजीवों का जंगलों में भोजन ही कम होने लगे, तो यह हालत इन वन्यजीवों के लिए किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. ऐसी ही परेशानी इन शिकारी वन्यजीवों को उत्तराखंड में आ रही है, जहां जंगलों में हॉग डियर (हाइलाफस पोर्सिनस) की कम होती संख्या टाइगर, लेपर्ड और लोमड़ी जैसे शिकारी वन्यजीवों के लिए परेशानी पैदा कर रही है.
जंगलों में कम हो रहे हैं ग्रासलैंड:हॉग डियर (HOG DEER) ग्रासलैंड पर रहना पसंद करते हैं और यही उसका वास स्थल होता है, लेकिन अब जंगलों से ग्रासलैंड धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. इसका सीधा असर हॉग डियर पर भी पड़ रहा है. भारतीय वन्यजीव संस्थान भी हॉग डियर की कम होती संख्या को लेकर अपनी चिंता जता चुका है और लगातार इनकी संख्या बढ़ाई जाने के लिए भी प्रयास किया जा रहे हैं. दरअसल हॉग डियर टाइगर, लेपर्ड और लोमड़ी का प्रिय भोजन माना जाता है और उनके कम होने से वाइल्डलाइफ में काम करने वाले वैज्ञानिक भी चिंतित हैं.
जंगल के 'शिकारियों' के लिए मुसीबत! (video-ETV Bharat)
फूड चेन के प्रभावित होने की ये है वजह:--
जंगल में फूड चेन का अहम हिस्सा माने जाने वाले हॉग डियर के कारण पूरी फूड चेन ही प्रभावित हो सकती है. ये बात वाइल्डलाइफ में काम करने वाले विशेषज्ञ अच्छी तरह से जानते हैं और इसलिए इन्हें संरक्षित करने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. दरअसल, हॉग डियर जिन ग्रासलैंड पर रहते हैं, उनके प्रभावित होने की कई वजह हैं. यहां तक कि बाहर की वनस्पतियां भी प्राकृतिक ग्रासलैंड को खत्म करने का काम कर रही हैं, जबकि हॉग डियर प्राकृतिक ग्रासलैंड में रहकर इसी को खाता है. - आरके मिश्रा, पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ -
हॉग डियर पर हो रही रिसर्च (photo-ETV Bharat)
ग्रासलैंड प्रभावित होने की वजह?
हॉग डियर के वासस्थल पर उसके भोजन की भी समस्या पैदा हो गई है.
जंगलों में अधिकतर ग्रासलैंड नदियों के किनारे भी मौजूद रहे हैं, लेकिन कई बांध बनने के बाद नदियों का स्वरूप बदला है, जिससे ग्रास लैंड भी प्रभावित हुए हैं.
मृदा क्षरण (मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट) और आपदा की स्थिति के दौरान भी ग्रासलैंड खत्म हो रहे हैं. इससे भी हॉग डियर का वासस्थल प्रभावित हुआ है.
जंगलों में वन विभाग अब ऐसे ग्रासलैंड को संरक्षित करने में जुट गया है.
भारतीय वन्यजीव संस्थान भी इसके संरक्षण को लेकर तमाम वर्कशॉप के जरिए जानकारियां देने का प्रयास कर रहा है.
हालांकि, वाइल्डलाइफ जानकार कहते हैं कि टाइगर्स का शिकार होने के अलावा हॉग डियर छोटे शिकारी के लिए ज्यादा बेहतर भोजन होता है.
हॉग डियर की कम होती संख्या से फूड चेन हो सकती है प्रभावित (photo-कॉर्बेट टाइगर रिजर्व)
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर्स को ज्यादा भोजन की जरूरत:उत्तराखंड में खासतौर पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के लिए यह स्थिति मुश्किल भरी हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर्स की संख्या तेजी से बड़ी है और कम घनत्व में काफी ज्यादा बाघ मौजूद हैं. ऐसे में कॉर्बेट में ज्यादा भोजन की जरूरत है. वैसे तो टाइगर्स के लिए सबसे बेहतर भोजन सांभर होता है, क्योंकि यह आकार में बड़ा होता है और टाइगर के लिए यह पर्याप्त भोजन बनता है. इसके उलट हॉग डियर आकार में छोटा होता है, जिसके कारण छोटे शिकारी वन्यजीवों के लिए ये ज्यादा बेहतर भोजन होता है. हालांकि, सांभर की गैर मौजूदगी में हॉग डियर का शिकार कर टाइगर अपनी भूख मिटाता है.
हॉग डियर करीब 50 किलोग्राम तक का होता (photo-कॉर्बेट टाइगर रिजर्व)
कैसा होता है हॉग डियर, भारत में कहां-कहां पाया जाता है?
हॉग डियर की मौजूदगी दुनिया भर में है और यह भारत समेत अमेरिका, थाईलैंड, चीन, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में भी पाया जाता है. भारत में इसे इंडियन हॉग डियर के नाम से जाना जाता है. हॉग डियर करीब 50 किलोग्राम तक का होता है. एक वयस्क हॉग डियर के तीन सिंग होते हैं. खास बात यह है कि कई देशों में यह विलुप्त भी हो चुका है. भारत में असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में बड़ी संख्या में यह मौजूद हैं. इसके अलावा कॉर्बेट में भी इसकी मौजूदगी दिखाई देती है. इतना ही नहीं, देश के दूसरे कुछ राष्ट्रीय उद्यान में भी यह पाया जाता है.
राजाजी टाइगर रिजर्व में दिखता है हॉग डियर:वाइल्डलाइफ चिकित्सक डॉ. राकेश नौटियाल ने बताया कि राजाजी टाइगर रिजर्व में भी यह हॉग डियर दिखाई दिया है. यह वन्यजीव गर्दन को नीचे रखकर चलता है और इसलिए इसे छोटी घास की जरूरत होती है. उन्होंने कहा कि ग्रासलैंड कम होने से यहां रहने वाले दूसरे वन्यजीव भी प्रभावित हो रहे हैं. ऐसे में इन क्षेत्रों को संरक्षित करना बेहद जरूरी है.
ग्रासलैंड को बचाने की जरूरत:वहीं, हॉग डियर की कम होती तादाद कोवन विभाग गंभीरता से लिया है. विभाग की ओर से अब ग्रासलैंड को संरक्षित करने के लिए बाहरी वनस्पतियों से ग्रासलैंड को बचाने और इस क्षेत्र में भू क्षरण को रोका जाएगा. इसके लिए तमाम संरक्षित वन क्षेत्र में ग्रासलैंड को चिन्हित किया जाएगा. यहां अलग-अलग ग्रासलैंड के प्रभावित होने की वजह को भी अध्ययन कर उस पर काम किया जाएगा.