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घना में बढ़ा दुर्लभ हॉग डियर का कुनबा, अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों से हो रही वंशवृद्धि - Wildlife Census

Hog Deer Population Increased, राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में दुर्लभ हॉग डियर का कुनबा बढ़ा है. यहां अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों के कारण तेजी से दुर्लभ हॉग डियर की वंशवृद्धि हो रही है. यह पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही घना प्रशासन के लिए भी बड़ी खुशखबरी है.

Hog Deer Population Increased
घना में बढ़ा दुर्लभ हॉग डियर का कुनबा (ETV BHARAT Bharatpur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 28, 2024, 6:30 AM IST

भरतपुर.देश में हिमालय के तराई क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत के अलावा भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में दिखने वाले दुर्लभ हॉग डियर का कुनबा बढ़ा है. घना में मौजूद प्राकृतिक आवास और अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों के चलते इनकी वंशवृद्धि हो रही है. घना में एक साल में हॉग डियर की संख्या में 28% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही घना प्रशासन के लिए भी बड़ी खुशखबरी है.

डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि हाल ही में 23 और 24 मई को घना में वन्यजीव गणना की गई. वन्यजीव गणना में घना में हॉग डियर की संख्या 9 दर्ज की गई, जबकि गत वर्ष 2023 में इनकी संख्या 7 थी. इससे साफ जाहिर है कि लुप्तप्राय मानी जाने वाली हिरण की यह प्रजाति घना में भलीभांति वृद्धि कर रही है.

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डीएफओ सिंह ने बताया कि हॉग डियर घना के अलावा हिमालय के तराई क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत में पाया जाता है. यानी हिरण की यह प्रजाति बहुत ही दुर्लभ है, लेकिन घना में हॉग डियर के लिए जरूरी प्राकृतिक आवास पर्याप्त उपलब्ध है. साथ ही यहां की भौगोलिक परिस्थितियां भी इनके अनुकूल हैं. ये यहां पर पूरी तरह से सुरक्षित हैं, जिसकी वजह से प्रजनन भी कर रहे हैं. यही वजह है कि एक साल में ही इनकी संख्या 7 से 9 हो गई है.

ऐसे पहचानें हॉग डियर :डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि छोटे आकार के इस हिरण की दौड़ने की आदत की वजह से इसको हॉग डियर के नाम से जाना जाता है. ये अधिकतर घास के मैदानों में रहते हैं. हल्के भूरे और पीले रंग का यह हिरण करीब 1 मीटर ऊंचा होता है. नर के काफी बड़े और फैले हुए सींग होते हैं लेकिन मादा के सींग नहीं होते. इनकी औसत आयु 15 से 18 साल तक होती है.

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डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि यह लुप्तप्राय श्रेणी का वन्यजीव है. वर्ष 2008 से पहले उत्तरी और पूर्वोत्तर भारत में इनकी अच्छी संख्या थी. लेकिन बाद में इसकी संख्या तेजी से कम होती गई. यही वजह है कि हॉग डियर को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 द्वारा शेड्यूल 1 स्पेसीज के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

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