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लोकसभा चुनाव 2024, ताकत बढ़ाने में जुटे सियासी दल, जानिए पश्चिमी यूपी में क्या बन रहे समीकरण - इंडी गठबंधन

रालोद से राहें जुदा होने पर पश्चिमी यूपी में पावर बढ़ाने को सपा और कांग्रेस (Lok Sabha elections 2024) का अब यूपी में गठबंधन हो चुका है. आइए जानते हैं कि अब खासतौर पर यूपी वेस्ट में बीजेपी के सामने इंडिया गठबंधन की स्थिति क्या है और क्या ये गठबंधन अब NDA को चुनौती दे सकता है. क्या कहते हैं वर्तमान समीकरण?

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 24, 2024, 9:42 AM IST

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मेरठ : लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर समाजवादी पार्टी ने सबसे पहले अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करनी शुरू कर दी है. कल तक जहां रालोद को सपा का साथ था और PDA को मजबूत माना जा रहा था, वहीं सपा से कई साथियों के रूठने और छोड़कर चले जाने के बाद अब पार्टी को कांग्रेस का साथ मिल गया है. दोनों दलों में समझौता हो चुका है. वेस्ट यूपी में अब रालोद और सपा की राहें अलग-अलग हैं.

समझौते के बाद मिलेगी मजबूती :इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिजवी कहते हैं कि इंडिया ब्लॉक में से रालोद के मुखिया जयंत के अलग होने से NDA के विरोधी दलों के लिए इसे एक झटका माना जा रहा था, लेकिन अब जब कांग्रेस और सपा का यूपी में गठबंधन हो गया है तो इससे जो नुकसान रालोद के साथ छोड़कर जाने से हुआ था, उसकी कुछ हद तक भरपाई हो सकती है.

वह कहते हैं कि लगातार यह संदेश जा रहा था कि शायद सपा और कांग्रेस की बात नहीं बन पा रही है. लेकिन, अब दोनों दलों के समझौते के बाद निश्चित ही मजबूती इन्हें मिलेगी. वहीं, वह कहते हैं कि अब सपा और कांग्रेस की कोशिश होगी कि जो छोटे एवं बाकी क्षेत्रीय दल हैं, उन्हें साथ मिलाकर सपा और कांग्रेस मजबूत विपक्ष बनने की ओर बढ़ेंगे.

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि अभी कांग्रेस की तरफ से ये कोशिशें हो सकती हैं कि बीएसपी को भी साथ लाने के लिए और कुछ जतन किए जाएं. इसी के साथ बाकी छोटे दलों को भी ये गठबंधन साथ ले ले. वह कहते हैं कि जो माना जा रहा था कि जयंत के एनडीए के साथ जाने के बाद जो बीजेपी की ताकत बढ़ गई थी. अब सपा कांग्रेस के साथ आने के बाद संघर्ष की स्थिति अब यूपी में पक्ष-विपक्ष में बनती दिख रही है.

बसपा सुप्रीमो होतीं तो भाजपा को चुनौती देना आसान होता :राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि पश्चिमी यूपी में देखा जाए तो भले ही कांग्रेस और सपा साथ आ गए हों, लेकिन यहां दो समीकरण बनते हैं जिसमें से एक जाट और मुस्लिम मिलकर बनाते हैं, या फिर मुस्लिम और दलित मिलकर बनाते हैं. हरिशंकर जोशी मानते हैं कि बीजेपी के खिलाफ अगर जीत हासिल करने के लिए प्रयत्न करने हैं तो इन्हीं दोनों समीकरणों में से एक का होना बेहद जरूरी है. वह मानते हैं कि जहां तक कांग्रेस की बात है तो कांग्रेस के पास हर जिले में अपना वोट है यह बात अलग है कि वह वोट प्रतिशत कितना है. वह मानते हैं कि इस गठबंधन में अगर मायावती होतीं तो भाजपा को चुनौती देना आसान हो जाता, लेकिन अब यह बहुत मुश्किल नजर आ रहा है.

सपा द्वारा मुजफ्फरनगर में घोषित किए गए अपने प्रत्याशी हरेंद्र मलिक के बारे में कहते हैं कि इस सीट पर पूर्व में रालोद से अजित सिंह चुनाव लड़े थे और हार गए थे. वहां खाप भी हैं, अगर ऐसे में हरेंद्र मलिक को जाट वोट बैंक मिले, साथ ही समाजवादी पार्टी वोट और कांग्रेस का जो वोट है वह मिले तो वहां बीजेपी के सामने चुनौती पेश की जा सकती है. जब रालोद मुखिया और बीजेपी साथ होंगे तो यह देखने वाली बात होगी कि यहां कौन क्या पाता है.

वह कहते हैं कि पिछली बार वेस्ट यूपी की 9 लोकसभा सीट विपक्ष के पास थीं. इन 9 को विपक्ष बरकरार रख पाए यह बड़ी बात है. पिछली बार 5 सपा और दस सीट पर बीएसपी जीती थी, ऐसे में इस बार रायबरेली और अमेठी समेत इन 17 सीटों को 'इंडी' गठबंधन अपने पास कर पता है तो यह बहुत बड़ी बात विपक्ष के लिए होगी. हालांकि, पिछली बार तो अमेठी में भी राहुल गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा था.

वह कहते हैं कि अगर विपक्षी एकजुटता होकर, मिलकर इतना भी कर लेते हैं तो बीजेपी का 400 पार का जो नारा है वह तो पूरा कम से कम नहीं हो पाएगा. वहीं, यूपी में भी भले ही बीजेपी 80 में से 80 सीटों पर जीत का दावा कर रही हो, लेकिन, अगर विपक्ष पहले वाली स्थिति को भी बरकरार रख पाता है तो भाजपा को यहां मुश्किल हो सकती है. हालांकि, अभी चुनाव में समय है और देखने वाली बात यह होगी कि किस तरह के समीकरण बनते हैं कौन किसके साथ खड़ा होता है या अलग लड़कर कौन दल किसकी मुश्किल बढ़ाता है.

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