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झूठा मुकदमा दर्ज कराने के दोषी को मिली 800 दिन की सजा, बरेली कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला - HISTORIC JUDGMENT OF BAREILLY COURT

बेटी के सुसाइड करने पर पिता ने ससुरालियों को झूठे मुकदमें में फंसाया था, अब कोर्ट से मिली सजा

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बरेली कोर्ट का ऐतिहासिक (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 7, 2025, 11:04 PM IST

बरेली:बरेली के अपर जिला न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले सुनाया. जिसमें उन्होंने दहेज हत्या के मुकदमों पर गंभीर चिंता जताते हुए मृतक लड़की के पिता को ही सजा सुना दी. जज ने अपने फैसले में बैंगलोर के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या और बदलते सामाजिक परिवेश का उदाहरण देते हुए कहा कि, वैवाहिक विवादों में झूठे आरोपों के कारण निर्दोष लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है. जज ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अब विवाह के बाद लड़कियां पति पर परिवार से अलग रहने का दबाव डालती हैं और जब इच्छाएं पूरी नहीं होती, तो झूठे मुकदमों का सहारा लिया जाता है.

बता दें कि बरेली के विशारतगंज थाना क्षेत्र की रहने वाली शालू की शादी 2019 में सोनू से हुई थी. 20 जुलाई 2023 को शालू ने अपने ससुराल में सुसाइड कर लिया था. घटना के बाद मृतक के पिता बाबूराम ने ससुराल वालों पर गंभीर आरोप लगाते हुए नवाबगंज थाने में पति, ससुर, देवर, देवर ननद, और दादिया सास के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने सभी आरोपियों को जेल भेज दिया था और इन सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल कर दिया था.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान बाबूराम ने कोर्ट में बयान दिया कि उसकी बेटी गुस्सैल स्वभाव की थी और ससुराल में भी झगड़ा करती थी. बाबूराम ने ये भी कहा कि उसने पहले झूठे बयान दिए थे कि उसकी पुत्री कि ससुरालियो ने दहेज के लिए मार डाला.

कोर्ट ने अपने फैसले में बैंगलोर के चर्चित इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले का उदाहरण दिया. अतुल ने वैवाहिक विवादों और कानूनी परेशानियों से तंग आकर जान दे दी थी. जज ने कहा कि वैवाहिक विवादों में झूठे आरोपों की वजह से निर्दोष लोगों को बड़ी मानसिक और आर्थिक पीड़ा झेलनी पड़ती है.
न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि, जीवन में कल्पनाएं और महत्वाकांक्षाएं होना अच्छी बात है, लेकिन उन्हें वास्तविकता के धरातल पर समझना भी जरूरी है.

सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने बताया कि झूठे आरोपों के कारण पति सोनू, ससुर पोशाकीलाल और दादिया सास को 17 महीने तक जेल में रहना पड़ा. कोर्ट ने इस आधार पर फैसला सुनाया कि लड़की के पिता बाबूराम को उतने ही दिन जेल में रहना पड़ेगा, जितने दिन निर्दोष लोग जेल में थे.

सरकारी वकील सुनील पांडे ने बताया कि अपर जिला न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मृतक के पिता बाबूराम को 800 दिन यानि दो साल दो महीने और 10 दिन की सजा और 2,54,352.35 रुपए जुर्माना लगाया है. जितना मृतक के ससुराल पक्ष ने जेल में समय बिताया उतना ही मृतक के पिता को कोर्ट ने सजा सुनाई है.

अपने फैसले में कोर्ट ने रामचरितमानस के इस दोहे का भी उल्लेख किया, "सचिव, वैद्य, गुरु जो प्रिय बोलहिं भय आश," "राज, धर्म, तन तीनि कर होइ नास।"

इसका अर्थ है कि यदि मंत्री, चिकित्सक और गुरु केवल भय या लालच में आकर मीठी बातें करते हैं, तो राज्य, धर्म और शरीर तीनों का नाश हो जाता है.


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