रायपुर :छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष्य में आपातकाल की चर्चा की जाएगी तो आज भी उस दौर के लोग मिल जाएंगे.जिन्होंने गिरफ्तारियां दी और यातनाएं झेली.वहीं कई लोग ऐसे हैं जो गिरफ्तार तो नहीं हुए लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से मुश्किल दौर को जीया.इन लोगों में राजनीतिक दलों के नेता , बुद्धिजीवी, साहित्यकार, पत्रकार, युवा और छात्र भी शामिल थे.आपातकाल का दंश सभी ने झेला.
आपातकाल का दंश अब भी है ताजा:आपातकाल का दंश झेलने वालों में एक नाम डॉक्टर रमेंद्र नाथ मिश्र का भी है. जो उस दौर में गिरफ्तार तो नहीं हुए. लेकिन आपातकाल को उन्होंने काफी नजदीक से देखा है. रमेंद्र नाथ आपातकाल काल के दौरान शैक्षिक संस्थानों में व्याख्यान देने जाते थे. उस बीच एलआईबी की नजर हमेशा उन पर होती थी. बावजूद इसके वे निर्भिक होकर अपना व्याख्यान देते. इतना ही नहीं वे तात्कालिक स्थिति के बारे में भी विस्तार से छात्र छात्राओं और युवाओं को बताते थे. यह बातें इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्र नाथ मिश्र ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कही.
डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि उनका मानना है कि यदि आपातकाल नहीं लगा होता ,तो आज की राजनीति दूसरी होती. आपातकाल लगने से देश की जनता में समग्रता और जागृति देखने को मिली. उस दौरान सभी वर्ग के लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पत्रकार,साहित्यकार, बुद्धिजीवी तक को नहीं छोड़ा था. डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि एक शिक्षक होने के नाते मैंने आपातकाल को भोगा और यथार्थ देखा है. उसे दौरान आप लिख नहीं सकते थे, बोल नहीं सकते थे, यह कौन सा प्रजातंत्र है.