अररिया: केंद्र सरकार ने सीएए कानून लाकर दूसरे देशों के शरणार्थियों को देश में नागरिकता देने के काम शुरू कर दिया है. इसी को लेकर अररिया में बर्मा से आए हुए विस्थापित लोगों का कहना है कि वह शरणार्थी नहीं बल्कि विस्थापित हैं. क्योंकि हमारे पूर्वज उस समय बर्मा गए थे जब वह भारत का हिस्सा हुआ करता था.
'ऐसे पड़ा वर्मा कॉलोनी नाम':90 परिवार लगभग 400 के करीब लोग उस वक्त लौटे थे और सभी बर्मा से वतन वापस आए थे. ऐसे में अररिया के इस कॉलोनी का नाम वर्मा कॉलोनी पड़ा. वहीं बर्मा से आये रामप्रवेश वर्मा ने बताया कि जब बर्मा में सन 1962/ 64 के दौरान सरकार बदली तो हम लोगों से कहा गया कि जो लोग भी अपने देश लौटना चाहते हैं लौट सकते हैं. इसको लेकर भारत सरकार ने बर्मा से लोगों को लाने का काम किया. उसके बाद 1972 में विस्थापित लोगों को पूर्णिया के मरंगा स्थित कैंप में रखा गया. उस समय अररिया पूर्णिया जिले का हिस्सा हुआ करता था.
"फारबिसगंज के शुभंकरपुर में हम लोगों को बसाया गया. हम लोग शरणार्थी नहीं है. हम लोग बिहार के ही वासी हैं और हम लोगों को सरकार ने बर्मा से लाकर अररिया जिले के शुभंकरपुर में बसाया था. खेती के लिए तीन एकड़ और रहने के लिए आधा एकड़ जमीन दी गई थी."-रामप्रवेश वर्मा,बर्मा कालोनी के सेवानिवृत्त शिक्षक