पटना : बिहार की पटना हाईकोर्ट ने तत्कालीन डीजीपी एसके सिंघल द्वारा इंस्पेक्टर को जबरन रिटायर कराने के आदेश को अवैध घोषित कर दिया है. अविनाश चंद्र की याचिका पर जस्टिस मोहित कुमार शाह ने सुनवाई की और ये फैसला सुनाया.
'नियम विरुद्ध है कार्रवाई' : याचिकाकर्ता इंस्पेक्टर अविनाश चंद्र मुजफ्फरपुर के मीनापुर में पदस्थापित थे. शराब के केस में एक आरोपित के नहीं पकड़े जाने के आरोप में अंतिम तौर पर अविनाश को तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसके सिंघल के आदेश पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी. उन्हें 26 नवंबर 2020 को इस आरोप में निलंबित किया गया कि वह शराब के केस में एक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सके. 4 दिसंबर 2020 से अविनाश के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी गई.
क्या है मामला: पुलिस उपाधीक्षक ने जांच की, लेकिन जांच की रिपोर्ट में अविनाश पर लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए. इसके बाद पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर सीतामढ़ी के तत्कालीन एसपी ने इस केस की जांच की. 3 सितंबर 2021 को सौंपी अपनी रिपोर्ट में अविनाश को दोषी करार दिया.
IG की रिपोर्ट पर हुई कार्रवाई : इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर तिरहुत रेंज मुजफ्फरपुर के आईजी ने 16 सितंबर 2021 को अविनाश को दूसरी बार कारण बताओ नोटिस जारी किया. 7 दिसंबर 2021 को अविनाश की एक साल तक वेतनवृद्धि रोकने का आदेश जारी किया. हाईकोर्ट ने मामले के अवलोकन से पाया कि वादी ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, जिस पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई.
डीजीपी ने जारी किया अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश : दूसरी तरफ, तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने 8 सितंबर 2022 को अविनाश की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश जारी कर दिया. पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आईजी के आदेश के छह महीने के दौरान पुलिस महानिदेशक उसकी समीक्षा कर आदेश जारी कर सकते थे. लेकिन इसकी जगह बग़ैर किसी आधार, अचानक अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई. यह प्रक्रिया नियम के तहत नहीं है.
हाईकोर्ट ने डीजीपी के आदेश को बताया अवैध : हाईकोर्ट ने तत्कालीन डीजीपी के आदेश को अवैध करार देते हुए पुलिस मुख्यालय और राज्य सरकार को आदेश दिया है कि अविनाश चंद्र को सेवा में फिर से बहाल किया जाये. साथ ही जब से उन्हें हटाया गया है, तब से अब तक का सारा बकाया उन्हें दिया जाए.
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