मेरठ :लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज में सैकड़ों तरह की दवाइयों का टोटा है. इससे मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है. यह समस्या कई सालों से हैं. लगभग 650 तरह की दवाएं मरीजों को नहीं मिल पा रहीं हैं. यह हाल तब है जब मेडिकल कॉलेज को पश्चिमी यूपी का एम्स माना जाता है. मेरठ के अलावा आसपास के तीन मंडलों के भी मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं.
आम तौर पर लगभग 800 से भी अधिक तरह की दवाएं मेडिकल कॉलेज में मरीजों को मिलनी चाहिए. ईटीवी भारत से मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदार बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग तीन से चार हजार मरीज आते हैं. डेढ़ हजार मरीज यहां एडमिट रहते हैं. बाकी मरीजों का अलग-अलग चिकित्सक उपचार करते हैं. मेडिकल कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉक्टर वीडी पांडेय कहते हैं कि किसी भी मेडिकल कॉलेज और किसी भी जिला अस्पताल में 395 तरह की भिन्न-भिन्न दवाइयां अवश्य होनी चाहिए, ये दवाइयां वे हैं जो अति आवश्यक श्रेणी में आती हैं.
839 तरह की दवाओं का होना जरूरी :मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल आरसी गुप्ता बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज जिला अस्पताल की तरह सामान्य मरीजों को नहीं देखता है. असाध्य रोगियों को ही देखता है. इसके साथ ही सुपर स्पेशियलिटी डिपार्टमेंट को भी देखता है, ऐसे में और भी मेडिसिन की जरूरत होती है. डॉक्टर वीडी पांडेय कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज में 8 सुपर स्पेशियलिटी विभाग हैं. ऐसे में और भी दवाइयों की आवश्यकता पड़ती है. मेडिकल कॉलेज के लिए 839 तरह की दवाओं का होना बेहद ही जरूरी रहता है. समस्या तब आती है जब मेडिकल कॉलेज को दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं.
75 तरह की दवाएं ही मिल रहीं :वीडी पांडेय ने बताया कि जो 395 तरह की आवश्यक दवाइयां होती हैं वह भी नहीं मिल पा रहीं हैं. मेडिकल कॉलेज में सिर्फ 150 से 175 तरह की ही विभिन्न दवाइयां ही मिल पाती हैं. मेडिकल कॉलेज को जो बजट दवाइयों के शार्टेज को दूर करने के लिए मिलता है, उसमें भी महज 20 प्रतिशत ही टेंडर कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त सप्लाई कॉर्पोरेशन से ही लेनी पड़ती है. इसमें कुछ लचीलापन अपनाते हुए टेंडर प्रक्रिया के बाद मेडिकल कॉलेज भी दवाइयां ले सकता है.