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युवा बेरोजगार, बुजुर्गों के लिए कोई व्यवस्था नहीं, जानें धनबाद में बिरहोर समाज की क्या है स्थिति - BIRHOR CAST CONDITION IN DHANBAD

धनबाद में सरकारी प्रावधान के बावजूद बिरहोर समाज के लोगोंं के लिए रोजगार की व्यवस्था नहीं है. लोग किसी तरह जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.

BIRHOR CAST CONDITION IN DHANBAD
बिरहोर समाद की दयनीय स्थिति (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 18, 2025, 2:32 PM IST

धनबाद:जिले में आदिवासी बिरहोर समाज की स्थिति में कोई भी सुधार नहीं हुआ है. विलुप्त हो रहे आदिवासी बिरहोर समाज के युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य में पलायन कर रहे हैं. गांव में बुजुर्ग लोग रस्सी बनाकर किसी तरह से गुजारा करने को मजबूर हैं. बिरहोर समाज के लोग सरकार से रोजगार की मांग कर रहे हैं. राज्य में सरकार बदलती रहती है, लेकिन किसी भी सरकार ने बिरहोर समाज को रोजगार से जोड़ने की कोई खास पहल नहीं की.

झारखंड आदिवासी राज्य है, लेकिन इस राज्य में विलुप्त हो रहे बिरहोर आदिवासी जनजाति की स्थिति बेहद दयनीय है. रोजगार नहीं रहने के कारण युवा दूसरे राज्य रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं. गांव में बुजुर्ग लोग प्लास्टिक, जुट के बोरा की रस्सी बनाकर किसी तरह से अपनी जिंदगी को काटने को विवश हैं.

जानकारी देते बिरहोर समाज के लोग (ईटीवी भारत)

मामला धनबाद जिले के तोपचांची प्रखंड अंतर्गत चलकरी पंचायत का है. जहां पर लगभग 250 बिरहोर आदिवासी जनजाति के लोग रहते हैं. धीरे-धीरे यह आदिवासी जनजाति विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं. टुंडी विधानसभा के अंतर्गत चलकरी पंचायत आता है, जहां वर्तमान में सत्ताधारी जेएमएम के विधायक मथुरा महतो हैं. हालांकि समुदाय के लिए स्वास्थ्य तथा शिक्षा की व्यवस्था सरकार के द्वारा गांव में की गई है, लेकिन रोजगार का साधन नहीं रहने के कारण बिरहोर समाज के जीवन शैली में कोई बदलाव नहीं हो पाया है.

इलाके में रोजगार की व्यवस्था नहीं होने के कारण आज भी यह समाज जंगल पर निर्भर हैं. जंगल से जड़ी बूटी लाकर तथा पेड़ की छाल से रस्सी बनाकर बेचने का काम करते थे, लेकिन वन विभाग की कड़ाई के कारण उनके पारंपरिक रोजगार पर भी ग्रहण लग चुका है. अब बाजार से प्लास्टिक, जुट की खाली बोरा खरीद कर लाते हैं और उसकी रस्सी बनाकर उसे बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

वहीं बिरहोर समाज के लोगों ने कहा कि रोजगार का कोई साधन नहीं है. रस्सी बनाकर 50 से 100 रुपए में बेचते हैं. इससे उनका गुजारा चलता है. बच्चों को रोजगार नहीं मिलने के कारण हरियाणा, मुंबई जैसे बड़े शहरों में जाना पड़ता है. अगर सरकार कुछ रोजगार कुछ दे देते तो पलायन नहीं करना पड़ता. इसके साथ ही थोड़ा बेहतर जीवन गुजारा हो जाता.

इस समाज की स्थिति को लेकर गिरिडीह सांसद के आजसू जिला प्रतिनिधि ने कहा कि बिरहोर आदिवासी जनजाति के रोजगार और सुरक्षा की व्यवस्था विधायक को करना चाहिए. विधायक अक्सर चलकरी बिरहोर गांव जाते हैं. उन्होंने विधायक से मांग की है कि रोजगार की मांग को भी पूरी करें. विधायक मद, जिला प्रशासन डीएमएफटी फंड से बिरहोर के लिए रोजगार मुहैया कराए. मनरेगा योजना से बिरहोर आदिवासी जनजाति को जोड़कर रोजगार दें. तभी पलायन रुक सकता है.

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