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नल जल योजना का सच: बूंद-बूंद पानी के लिए जान जोखिम में डाल रहे आदिवासी, पाठापुर गांव में नहीं है एक भी हैंडपंप - Panna tribal village Water crisis

पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थित आदिवासी गांव पाठापुर में पानी की भयंकर किल्लत है. आजादी से लेकर अब तक गांव में एक भी हैंडपंप नहीं लगा है. इस गांव के लोग खतरनाक पहाड़ियों के रास्ते से पानी भरने जाने को मजबूर हैं. यहां के लोग झरने के पानी के सहारे जी रहे हैं. पानी लेने जाने के दौरान सबसे बड़ा खतरा जान का होता है. प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

PANNA TRIBAL VILLAGE WATER CRISIS
जान जोखिम में डालकर पहाड़ी से पानी भर रहे आदिवासी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 24, 2024, 8:13 PM IST

पन्ना।मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थित आदिवासी ग्राम पाठापुर के लोग बूंद पानी के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं. एक ऐसा गांव जहां पर आदिवासियों को शासन की नल जल योजनाओं का कोई भी लाभ नहीं मिल रहा. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में एक भी नल कूप नहीं है.

जंगल के बीच पहाड़ी रास्ते से पानी भरने को मजबूर आदिवासी (ETV Bharat)

गांव में 100 आदिवासी परिवार रहते हैं

एक तरफ पन्ना जिले का टेंपरेचर आसमान छू रहा है और भीषण गर्मी पड़ रही है. वहीं दूसरी तरफ कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का संकट इतना बढ़ गया है कि लोगों अपनी प्यास बुझाने के लिए जीवन दाव में लगाना पड़ रहा है. मामला टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आदिवासी बाहुल्य गांव पाठापुर का है. जहां के करीब 100 आदिवासी परिवार घने जंगलों के दुर्गम पहाड़ियों के बीच झरने से पानी लाकर प्यास बुझा रहे हैं.

गांव में नहीं है एक भी हैंडपंप

पन्ना टाइगर रिजर्व की घने जंगलों के बीच स्थित ग्राम पाठापुर में एक भी हैंडपंप एवं बोरवेल नहीं है. लोग अपनी अपनी की जरूरत को पूरा करने के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर हैं. यहां पर शासन प्रशासन की नल जल योजना अभी तक नहीं पहुंची है. इसलिए लोग आजादी के 77 साल बाद भी प्राकृतिक स्रोतों से पेयजल की पूर्ति कर रहे हैं.

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पहाड़ी के रास्ते पानी से प्यास बुझा रहे आदिवासी

पाठापुर गांव में लगभग 100 परिवार निवास निकास करते हैं. यह गांव पन्ना टाइगर रिजर्व की जंगलों के बीच में स्थित है. यहां पर मूलत आदिवासी निवास करते हैं. जो अपने जरूरत के पेयजल के लिए घने जंगलों के बीच पथरीले पहाड़ी नुमा रास्तों से होकर प्रतिदिन पीने की पानी की जरूरत को पूरा कर रहने को मजबूर हैं. प्रतिदिन प्लास्टिक के डिब्बो को सिर पर रखकर पथरीले पहाड़ी नुमा रास्तों से चढ़ना और उतरना इन आदिवासियों का रोज का काम बन गया है. जिसमे जान का भी खतरा बना रहता है. साथ ही रास्तों में जंगली जानवरों के मिलने का खतरा बना रहता है.

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