सागर: शहर की पहचान और ऐतिहासिक झील लाखा बंजारा के किनारे बने नजरबाग की बात करें, तो यह बुंदेलखंड की एक ऐसी विरासत है. जो मराठा शासक बाजीराव पेशवा के वैभव के साथ महात्मा गांधी की बुंदेलखंड यात्रा की गवाह है. रखरखाव के अभाव में ये ऐतिहासिक धरोहर जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच गई है, लेकिन यहां के पुरातत्वविद और इतिहासकारों के साथ जागरूक नागरिक इसको बचाने के लिए कई तरह की पहल कर रहे हैं.
इसी कड़ी में 24 नवंबर को जिला पुरातत्व पर्यटन एवं सांस्कृतिक परिषद द्वारा नजरबाग के ऐतिहासिक महत्व को लेकर संगोष्ठी की जा रही है. जिसमें मध्य प्रदेश के जाने-माने पुरातत्वविद और इतिहासकार शिरकत कर रहे हैं. वहीं स्थानीय चित्रकारों द्वारा नजर बाग में बने चित्रों को फिर से नया रंग दिया जा रहा है.
नजरबाग का ऐतिहासिक महत्व
वरिष्ठ पत्रकार और आर्कियोलाॅजी में पीएचडी डाॅ. रजनीश जैन बताते हैं, "सागर में 1733 से 1820 तक मराठाओं का शासन रहा है. इस बीच गोविंद पंत खैर बाजीराव प्रथम द्वारा यहां नियुक्त कमाबीशदार फिर सूबेदार और फिर सागर के राजा रहे हैं. उन्होंने लगभग 1750 से 1760 के बीच इसे बनवाया था. ऐसा अनुमान नजरबाग के स्थापत्य कला को देखकर लगाया जाता है. नजरबाग मराठा शैली में बना हुआ है. इसकी खास बात ये है कि इसके जीर्ण शीर्ण होने के बावजूद इसमें उस समय की पेटिंग अभी भी मौजूद है.
कुछ बहुत अच्छी स्थिति में है. ये एक तरह से समुद्र किनारे बने उन बंगलों की तरह है, जो लाखा बंजारा झील के किनारे बनाया गया था. संभावना है कि यहां तत्कालीन राजा अन्य राजनायिको या मेहमानों को ठहराते होंगे. यहां की चित्रकारी देखकर लगता है कि यहां परिवार बसे होगें या फिर सांस्कृतिक धार्मिक आयोजन भी होते होंगे.
नजरबाग का महात्मा गांधी कनेक्शन
डॉ. रजनीश जैन बताते हैं, "इसके अलावा 1933 में महात्मा गांधी जब अनंतपुरा यात्रा के लिए निकले थे, तो इस दौरान सागर आए थे. उनको नजरबाग में ही रात्रि विश्राम कराया गया था. उनकी यात्रा के आमंत्रण पत्र में ये विशेष रूप से उल्लेख है. यहां महात्मा गांधी ने रात्रि विश्राम करने के अलावा आजादी की लड़ाई से जुड़े कई लोगों से मुलाकात की थी.
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कब्जे के बाद पुलिस अकादमी का बेंचा गया
धीरे-धीरे अंग्रेजों के शासन में नजरबाग का महत्व कम हुआ और यहां किराएदारों ने कब्जा कर लिया. इसके रखरखाव की जिम्मेदारी एक मराठा परिवार सप्रे परिवार के पास थी. उन्होंने किराएदारों से परेशान होकर 1960-70 के दशक पुलिस अकादमी के लिए बेच दिया. पुलिस अकादमी ने इसका पुरातात्विक महत्व नहीं समझा और रखरखाव नहीं किया. एक बार तो इसको नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन हम लोगों ने आगे आकर इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित कर गिराने की कार्रवाई रोकी है. इस घटना के बाद स्मार्टसिटी ने यहां 40 लाख रुपए खर्च कर जीर्णोद्धार कराया है. अब हमारी कोशिश है कि इसे संरक्षित किया जाए, लोग इसके महत्व को समझे और इसका जीर्णोद्धार कराकर जनता के लिए खोला जाए.