नूंह:हरियाणा के नूंह की धरती पवित्र है. दुनिया भर में इस्लाम के प्रचार की शुरुआत नूंह की धरती से करीब 100 साल पहले हुई थी. तब्लीगी जमात की शुरुआत हजरत मौलाना मरहूम इलियास साहब ने की थी. सबसे बड़ा पहला मदरसा भी 1922 में तकरीबन 102 वर्ष पहले नूंह शहर से ही शुरू किया गया था. शुरुआत में इसका भवन ज्यादा अच्छा नहीं था, लेकिन पिछले कई सालों से लगातार भवन निर्माण का काम यहां चल रहा है और अब यह भव्य व दिव्य रूप ले चुका है.
नूंह में हुई थी हिंसा: इलाके में ईद व बकरीद के चांद दिखने या ना दिखने का फैसला भी यहां पर गठित हिलाल कमेटी के द्वारा किया जाता है. जिसमें जिले के बड़े उलेमा शामिल हैं. इसके अलावा, नूंह शहर की धरती को अमन व भाईचारे के लिए जाना जाता है. हालांकि शोभायात्रा के दौरान नूंह शहर में वर्ष 2023 में हिंसा हो गई थी. जिससे एक बदनुमा दाग इस जिले के इतिहास पर लगा था. लेकिन बहुत तेजी से हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आपसी भाईचारे को बहाल किया और आज सदियों की तरह फिर से रहते आ रहे हैं. इलाके के बाद मदरसा व मस्जिद के संचालक मुफ़्ती जाहिद हुसैन, ताहिर हुसैन देवला एडवोकेट, मौलाना डॉक्टर रफीक आजाद, वरिष्ठ पत्रकार आसिफ अली चंदेनी इत्यादि ने बताया कि तब्लीगी जमात की शुरुआत 1925 में हजरत मौलाना मरहूम इलियास साहब ने की थी.
मदरसे की बढ़ती संख्या: आजकल दुनिया भर में तबलीगी जमात फैली हुई है. लगभग एक अरब से ज्यादा लोग इस तब्लीगी जमात से जुड़े हुए हैं. जो इस्लाम धर्म के प्रचार के साथ-साथ जहालत व बुराइयों को छोड़ने की मुस्लिम समाज के लोगों से लगातार अपील कर रहे हैं. शुरुआत में इस मदरसे का नाम मोइनुल इस्लाम रखा गया था. जो आज तक है. जानकार बताते हैं कि हजरत मौलाना मरहूम इलियास साहब ने राजस्थान और हरियाणा में स्थित मेवात क्षेत्र में तकरीबन 25 इस्लामी मदरसे खोले थे. जिसके कारण दीन का फैलाव तेजी से हुआ.