नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी लोकसभा सीट, दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से एक है. यह सीट 2008 में हुए लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन में सामने आई थी. इस सीट को दिल्ली के 10 विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया था. इस क्षेत्र में बहुत घनी आबादी है. इसकी दो विधानसभा सीटें मुस्लिम बाहुल्य हैं, जबकि अन्य दो सीटों, बाबरपुर व करावलनगर में भी मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं. इस सीट पर पहली बार 2009 में 14वीं लोकसभा के चुनाव के समय चुनाव हुए थे.
उस वक्त मुख्य मुकाबला केंद्र की सत्ता में काबिज कांग्रेस और भाजपा में हुआ था. देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय भी इसी संसदीय क्षेत्र में आता है. साथ ही सिविल सेवा और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए प्रसिद्ध कोचिंग हब मुखर्जी नगर भी इसी संसदीय सीट का हिस्सा है. यहां पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार के लोगों की संख्या सर्वाधिक है. अब तक हुए यहां तीन लोकसभा चुनावों में एक बार कांग्रेस और दो बार भाजपा को जीत मिली है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां आप दूसरे नंबर पर थी, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी.
उत्तर-पूर्वी लोकसभा में आने वाली विधानसभा सीटें: इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाले 10 विधानसभा क्षेत्र बुराड़ी, रोहताश नगर, बाबरपुर, तिमारपुर, सीलमपुर, गोकलपुर, सीमापुरी, घोंडा, मुस्तफाबाद और करावल नगर हैं. इनमें से तीन सीट करावल नगर, घोंडा व रोहताश नगर भाजपा के पास हैं. जबकि, बाकी सात सीटों पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है.
शीला दीक्षित ने यहां से लड़ा था अपना अंतिम चुनाव:लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं स्व. शीला दीक्षित ने 2019 में कांग्रेस आलाकमान के कहने पर इसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि, पहले उनका चुनाव लड़ने का कोई विचार नहीं था, लेकिन जब पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया, तो उन्होंने पार्टी के निर्णय को सर्वोपरि मानते हुए चुनाव लड़ा था.
हालांकि, उन्हें भाजपा के मनोज तिवारी से साढ़े चार लाख से भी अधिक वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा था. उनके यहां से चुनाव लड़ने के कारण ही आम आदमी पार्टी यहां तीसरे नंबर पर रही थी. वहीं, मई में लोकसभा चुनाव संपन्न होने के दो महीने बाद ही 20 जुलाई को शीला दीक्षित का आकस्मिक निधन हो गया था, जिसके चलते 2019 का लोकसभा चुनाव उनका आखिरी चुनाव साबित हुआ था.