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उत्तराखंड में वोट बैंक की राजनीति के भेंट चढ़ती रही 582 मलिन बस्तियां, स्थायी समाधान की दिशा में नहीं हुआ काम

उत्तराखंड में 582 मलिन बस्तियों का मामला सुर्खियों में है. इन मलिन बस्तियों को लेकर जमकर सियासी रोटियां सेकी गई.

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राजनीति के भेंट चढ़ती 582 मलिन बस्तियां (photo- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 5 hours ago

देहरादून: उत्तराखंड में 582 मलिन बस्तियों को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. दरअसल, मलिन बस्तियों के अस्तित्व को अस्थायी तौर पर बचाने के लिए लाया गया अध्यादेश का कार्यकाल 23 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है. ऐसे में एक बार फिर मलिन बस्तियों में रहने वाले लाखों परिवारों के घरों पर खतरा मंडराने आने लगा है.

मलिन बस्तियों के स्थायी समाधान की दिशा में नहीं हुआ काम:मलिन बस्तियों में बसे लाखों परिवार सालों से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं. हालांकि, ये सभी परिवार अवैध तरीके से नदी-नालों के किनारे सालों से बसे हुए हैं, जिन्हें सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ भी मिल रहा है. यहां तक की इन्हें बिजली और पानी की सुविधा भी सरकारों की ओर से उपलब्ध कराई जा रही है, जिसकी एक मुख्य वजह यही है कि शुरू से ही राजनीतिक पार्टियां इन मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं.

मलिन बस्तियों के स्थायी समाधान की दिशा में नहीं हुआ काम (video-ETV Bharat)

2010 से 2011 के बीच मलिन बस्तियों का हुआ था सर्वे:साल 2010 से 2011 के बीच शहरी विकास विभाग की ओर से किए गए सर्वे के अनुसार, मलिन बस्तियों में रह रहे 55 फीसदी लोगों के पास पक्का मकान था, जबकि 29 फीसदी लोगों के पास आधा पक्का मकान और 16 फीसदी लोगों के पास कच्चा आवास था. साथ ही 86 फीसदी घरों में बिजली कनेक्शन थे, लेकिन 582 बस्तियों में से केवल 71 मलिन बस्तियां ही सीवेज नेटवर्क से जुड़ी थीं.

उत्तराखंड में मलिन बस्तियों की स्थिति (photo- ETV Bharat)

मलिन बस्तियों में कुल 252 आंगनबाड़ी और प्री स्कूल मौजूद:इसके अलावा प्रदेश के इन सभी मलिन बस्तियों में कुल 252 आंगनबाड़ी और प्री स्कूल मौजूद थे. स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से 93 हेल्थ सेंटर भी मलिन बस्तियों में बने हुए थे. फिलहाल मलिन बस्तियों की प्रदेश में क्या मौजूदा स्थिति है. इसकी जानकारी मलिन बस्तियों के सर्वे के बाद ही पता चल पाएगा. हालांकि, शहरी विकास विभाग ने 13 साल बाद एक बार फिर मलिन बस्तियों का नए सिरे से सर्वे करने का निर्णय लिया है.

मलिन बस्तियों की जिलावार स्थिति (photo- ETV Bharat)

साल 2012 में एनजीटी सख्त रुख अपनाया था:उत्तराखंड की नदियों को घेरे जाने के मामले को लेकर साल 2012 में एनजीटी ने सख्त रुख अपनाया था. साथ ही नैनीताल हाईकोर्ट ने नदियों के किनारे बनी 582 मलिन बस्तियों के अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे, जिसके चलते तात्कालिक कांग्रेस सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया था.

वहीं, नियमितीकरण को लेकर कोई प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई. ऐसे में साल 2016 में तात्कालिक कांग्रेस सरकार मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर अध्यादेश लेकर आई थी. साथ ही राजपुर विधानसभा सीट से तात्कालिक विधायक राजकुमार की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई, जो मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर काम कर रही थी.

2018 को तीन साल के लिए एक अध्यादेश जारी:साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सरकार बदली और भाजपा की सरकार बनने के बाद कांग्रेस सरकार का मलिन बस्तियों के नियमितीकरण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इसके बाद साल 2018 में नगर निकाय चुनाव से ठीक पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस बाबत आदेश दिए कि मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को वहां से हटाकर अन्य जगह पर पुनर्वासित किया जाए.

जिसके चलते उत्तराखंड सरकार ने 17 अक्टूबर 2018 को तीन साल के लिए एक अध्यादेश जारी किया, जिसके तहत सरकार ने इस बात को कहा कि 3 साल तक मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को हटाया नहीं जाएगा और इस दौरान राज्य सरकार मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर कदम उठाएगी.

उत्तराखंड सरकार अध्यादेश के कार्यकाल को और बढ़ाएगी:इस दौरान भाजपा सरकार की ओर से मलिन बस्तियों के अस्थायी समाधान को लेकर कोई भी काम नहीं किया गया और ना ही कोई निर्णय लिया गया, जिसके चलते 21 अक्टूबर 2021 को एक बार फिर अध्यादेश के कार्यकाल को 3 साल के लिए बढ़ा दिया गया. ऐसे में अब 23 अक्टूबर 2024 को अध्यादेश का कार्यकाल पूरा हो रहा है.

लिहाजा, हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, प्रदेश में मौजूद 582 मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को वहां से हटाया जाना चाहिए. साथ ही किसी अन्य जगह पुनर्वासित करना चाहिए, लेकिन अब उत्तराखंड सरकार एक बार फिर अध्यादेश के कार्यकाल को 3 साल के लिए बढ़ाने जा रही है. इसकी वजह यह भी है कि आगामी नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव होने हैं, जिसके चलते उत्तराखंड सरकार कोई भी रिस्क उठाने के मूड में नजर नहीं आ रही है.

मंत्रिमंडल की बैठक में अध्यादेश पर लगेगी मुहर:बहरहाल, उत्तराखंड सरकार ने निर्णय लिया है कि मलिन बस्तियों के अस्तित्व को बचाने के लिए और इन बस्तियों में रह रहे लोगों को अस्थायी राहत देने के लिए अध्यादेश लेकर आएगी. इससे स्पष्ट होता है कि आगामी नगर निगम और त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव से पहले उत्तराखंड सरकार कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहती है.

यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार अगले 3 साल के लिए एक बार फिर अध्यादेश के कार्यकाल को बढ़ाने का निर्णय लिया है. लिहाजा, 23 अक्टूबर को सचिवालय में होने जा रहे मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को अस्थायी राहत देने के लिए अध्यादेश का कार्यकाल बढ़ाए जाने पर मुहर लगेगी.

मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की दिशा में आगे बढ़ेगी सरकार:शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि साल 2021 में नगर निकाय का चुनाव नहीं था, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने अध्यादेश के कार्यकाल को तीन साल के लिए बढ़ाया था. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की दिशा में भी आगे बढ़ेगी, लेकिन वर्तमान समय में जिस स्थिति में खड़े हैं, उस समय सरकार के पास एक मात्र विकल्प है कि अध्यादेश के जरिए मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को अस्थायी राहत दी जाए, जिसके आधार पर ही सरकार ने निर्णय लिया है.

प्रेमचंद अग्रवाल ने कही ये बात:शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को अस्थायी राहत देने के लिए जो अध्यादेश लाया गया था, उसकी अवधि 23 अक्टूबर 2024 को पूरी हो रही है. ऐसे में अध्यादेश के अवधि को अगले 3 साल के लिए और बढ़ाने जा रहे हैं, जिसका प्रस्ताव 23 अक्टूबर को होने वाले मंत्रिमंडल की बैठक में लाया जाएगा.

सीएम धामी बोले जो बस्तियां जहां पर वहीं रहेंगी:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले ही इस बात पर जोर दे चुके हैं कि मलिन बस्तियां यथावत रहेगी, राज्य सरकार मलिन बस्तियों और मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए संवेदनशील है. ऐसे में मलिन बस्तियां जहां पर अभी मौजूद हैं वो बस्तियां वहीं पर रहेंगी. इसके लिए जो भी काम करने हैं सरकार वो काम करेगी.

कांग्रेस ने भाजपा पर साधा निशाना:कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो चीजों को जिंदा रखती है, लेकिन कभी पूरा नहीं करती. साल 2016 में तात्कालिक कांग्रेस सरकार मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों के नियमितीकरण को लेकर अध्यादेश लेकर आई थी. राजपुर सीट से तात्कालिक विधायक की अध्यक्षता में कमेटी भी गठित की थी, जो मलिन बस्तियों के नियमितीकरण को लेकर काम कर रही थी. उन्होंने कहा कि नगर निगम को इस बाबत निर्देश दिए गए थे कि कुछ प्रारूप पत्र तैयार किए जाए, जिसमें इन सभी लोगों के जमीनों की जानकारी हो, ताकि इन सभी को मालिकाना हक दिया जा सके.

कांग्रेस ने भाजपा पर साधा ये निशाना:करन माहरा ने कहा कि जो मलिन बस्तियां खतरे की जद में बसी हुई हैं. वहां रह रहे लोगों को हटाकर कहीं और बसाया जाए, लेकिन साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सत्ता परिवर्तन हो गया. ऐसे में भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार के इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उन्होंने कहा कि 7 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन भाजपा सरकार ने मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया है, बल्कि मलिन बस्तियों में रह रहे तमाम लोगों के घरों को तोड़ने और उनको बेघर करने का काम किया है.

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