गंदा पानी पीकर आदिवासी बिता रहे जीवन, सरकारें आईं और गईं लेकिन नहीं बदली किस्मत
No Clean Water System मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जब नया जिला बना तो ऐसी उम्मीद थी कि क्षेत्र की किस्मत बदलेगी.लेकिन आज भी कई गांव सालों पुरानी समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसा ही एक गांव भरतपुर ब्लॉक में है.जहां के लोग गंदा पानी पीकर जिंदा हैं.Karamati Village Of Bharatpur
मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : भरतपुर जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत उमरवाह आता है.इस ग्राम पंचायत का एक आश्रित गांव है जिसका नाम है कारीमाटी. कारीमाटी गांव का नाम आज हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि इस गांव की किस्मत जिस भी स्याही से लिखी गई है वो शायद बीच में ही खत्म हो गई थी.तभी तो आजादी के 76 साल बाद भी इस गांव के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए टकटकी लगाए बैठे हैं. हर साल कैलेंडर तो बदल रहे लेकिन गांव का भला नहीं हो सका है.
गंदा पानी पीकर कट रही जिंदगी :आपको बता दें कि ग्राम पंचायत उमरवाह के आश्रित ग्राम कारीमाटी के लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पीने का साफ पानी नसीब नहीं हो रहा है. यहां के बाशिंदे आज भी गंदा और धुंधला पानी पीने को मजबूर हैं. इसी गंदे पानी से लोगों का गुजर बसर हो रहा है.वहीं कई मजरा टोला ऐसे भी हैं जहां पर गंदा पानी भी नसीब नहीं हो सका है. लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. गांव के लोग गंदे नाले के पानी से ही अपना जीवन काट रहे हैं.
साफ पानी का इंतजार करते जवानी बीती : कारामाटी गांव की दशा ऐसी है कि यहां चार पहिया वाहन बड़ी मुश्किल से ही पहुंच पाता है. इसलिए गांव तक आने जाने के लिए बाइक का ही सहारा लेना पड़ता है.गांव में रहने वाली बुजुर्ग महिला के मुताबिक आज भी साफ पानी नहीं मिलने से ढोड़ी से ही पानी लाना पड़ता है.
''वृद्ध आदमी क्या करे. उसी पानी में अपना निस्तार करते रहते हैं. ना ही सचिव आता है और ना सरपंच आता है. जो कुछ हमें दुख होता है हम किसे बताएं. 45 साल हो गया है हमको पानी का परेशानी कौन देखें. देखने वाला कोई नहीं है. अगर हम मर जाए देखने वाला कोई नहीं.''- फूलबाई,ग्रामीण
बनास नदी में निस्तारी का काम :वहीं गांव में रहने वाले सकसूदन सिंह के मुताबिक पानी की समस्या सबसे ज्यादा है. नहाने धोने के लिए एक बनास नदी है. वहीं पूरा गांव निस्तारी के लिए जाता है.यहां के सरपंच को पीने के पानी के लिए आवेदन दिए थे. कई बार आवेदन ग्राम सभा में भी दिए. लेकिन आज तक काम नहीं हुआ.
''हमारे पारा में भी पानी नही है. हम खुद कई बार लिख पढ़कर दिए हैं.पानी की समस्या को सरपंच भी जानता है.हमारे यहां भी नहीं है. हम खुद पानी लेने दूर जाते हैं. नहाने धोने बनास नदी जाते हैं. कई बार लिख कर दिए अभी तक पानी की सुविधा नहीं मिल पाई है.''- दल प्रताप सिंह, पंच
आपको बता दें भरतपुर तहसील मुख्यालय जनकपुर से कारीमाटी की दूरी 26 किमी है.गांव में आदिवासी परिवारों की बाहुल्यता है.हर पांच साल में चुनाव आते हैं. जनप्रतिनिधि वादों के बौछार करके कारीमाटी से चले जाते हैं.और चुने जाने के बाद फिर कभी गांव नहीं लौटते.जिसका नतीजा ये है कि पानी जैसी चीज आज के जमाने में कारीमाटी को नसीब नहीं हुई. अब देखना होगा कि मीडिया में जानकारी आने के बाद प्रशासन की नींद टूटती है कि नहीं.