रांची: देशभर में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (सीईए) पोर्टल में तकनीकी खराबी आने की वजह से झारखंड में नए अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहा है. साथ ही पुराने अस्पतालों का रिन्यूअल भी क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत नहीं किया जा रहा है. इस संबंध में रांची के सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार ने कहा कि सीईए पोर्टल पिछले तीन महीने से काम नहीं कर रहा है. इस कारण झारखंड में संचालित अस्पतालों का रिन्यूअल और रजिस्ट्रेशन क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत फिलहाल बंद है.
सीईए के लिए मैन्युअल आवेदन करने वाले अस्पताल संचालकों को दी गई राहत
सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार ने बताया कि जिस अस्पताल का क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन समाप्त हो गया है वह मैन्युअल तरीके से अप्लाई कर रहे हैं. जिन अस्पतालों ने अप्लाई कर दिया है उन्हें फिलहाल राहत देने की बात स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कही गई है. स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों के सिविल सर्जन को निर्देश दिए हैं कि जिन अस्पताल संचालकों ने सीईए के लिए अप्लाई कर दिया है उनपर फिलहाल किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जाए.
पोर्टल में खराबी की वजह से आयुष्मान भारत से जुड़े मरीजों को भी हो रही है परेशानी
इधर, क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट का पोर्टल खराब होने की वजह से आयुष्मान भारत से जुड़े मरीजों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस संबंध में रांची के डीडीएम राकेश कुमार बताते हैं कि जो अस्पताल आयुष्मान भारत से पैनल्ड हैं उन अस्पतालों के लिए झारखंड की तरफ से गाइडलाइन जारी किए गए हैं. उन्हें स्पष्ट कर दिया गया है कि अस्पताल में आने वाले गरीब मरीजों का त्वरित इलाज करें और यदि उन्होंने अप्लाई कर दिया है तो पोर्टल के ठीक होने के बाद आयुष्मान भारत के तहत आने वाले सभी राशि का भुगतान तुरंत किया जाएगा.
गौरतलब है कि राजधानी रांची सहित राज्य में कई ऐसे अस्पताल हैं जो क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हैं. लेकिन पोर्टल के खराब होने की वजह से कई अस्पताल अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यूअल नहीं कर पा रहे हैं. वहीं कई ऐसे नए अस्पताल हैं जिनका पहला रजिस्ट्रेशन ही नहीं हो पा रहा है. बता दें कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत राज्य के सभी निजी अस्पताल सरकारी नियंत्रण में आते हैं. सरकार इसके माध्ययम से अस्पतालों पर अपनी पैनी नजर बनाकर रखती है, ताकि मरीजों के साथ दुर्व्यवहार या फिर इलाज के नाम पर उनका आर्थिक दोहन ना किया जा सके. लेकिन पोर्टल के खराब होने की कारण से कहीं ना कहीं निजी अस्पतालों पर सरकार की निगरानी कम होती जा रही है.