बगहा: बिहार के बगहा के तीन सिद्धपीठों में से एक नर देवी माता स्थान पर नेपाल, बिहार और यूपी के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. मान्यता है की इस स्थान पर नर की बलि देने की परंपरा थी. वहीं अब यहां श्रद्धालु या तो बकरे की बलि देते हैं या उनका कान काटकर छोड़ देते हैं. इसके अलावा कबूतर और मुर्गा छोड़ने की भी परंपरा चली आ रही है.
क्यों कहते हैं इसे नर देवी स्थान: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच इंडो नेपाल सीमा पर आदिकाल से स्थापित नर देवी माता मंदिर की बड़ी महिमा है. वैसे तो भक्त यहां सालों भर दर्शन और पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्र में सप्तमी के दिन से भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है. बताया जा रहा है की इस नर देवी स्थान पर सैकड़ों वर्ष पूर्व नर की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण इसका नाम 'नर देवी' पड़ा.
राजा जासर माता को चढ़ाते थे अपना सिर: मंदिर में तकरीबन 20 वर्षों से पुजारी के तौर पर पंडित खाटू श्याम पुरोहित कार्यरत हैं. वो बताते हैं कि राजा जासर माता के बहुत बड़े और प्रिय भक्त थे. वे माता रानी को बलि के तौर पर अपना शीश यानी सिर काट कर चढ़ाते थे और शीष वापस जुड़ जाता था. जिसके बाद उनके दो बलवान पुत्र आल्हा और ऊदल ने इस बियावन जंगल में इस मंदिर की स्थापना की और यहां माता रानी की पूजा अर्चना विधि विधान से करने लगे. यहीं नहीं उनके द्वारा यहां नर की बलि दी जाने लगी.
"नर की बलि देने की वजह से इस सिद्धपीठ स्थान का नाम नर देवी पड़ा. यहां माता के स्थान पर अक्सर रात्रि में बाघ आते हैं और देवी की परिक्रमा कर वापस लौट जाते हैं. हमने कई दफा बाघों को यहां विचरण करते देखा है लेकिन वे क्षति नहीं पंहुचाते."-खाटू श्याम पुरोहित, पुजारी, नर देवी स्थान
भक्तों ने दी अपनी बलि:वहीं स्थानीय साहित्यकार और लेखक सचिदानंद सौरभ बताते हैं की इस नर देवी स्थान को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. यहां नर की बलि देने की प्रथा थी. बताया जाता है की इस मंदिर की स्थापना बुंदेलखंड के राजा जासर के पुत्र आल्हा–ऊदल ने सैकड़ों वर्ष पहले की थी. राजा जासर देवी मां के अनन्य भक्त थें. उन्होंने खुद अपनी बलि माता के चरणों में दी थी. देहावसान के पश्चात उनके दोनों बेटों आल्हा एवं ऊदल ने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए मंदिर की स्थापना कराई.